हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/वह तोड़ती पत्थर

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हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका
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वह तोड़ती पत्थर


संर्दभ

वह तोड़ती पत्थर' प्रसिद्ध छायावादी कवि सूर्य कान्त त्रिपाठी ' निराला ' द्वारा रचित है। निराला जी अपनी रचनाओं में जीवन के मार्मिक दृश्य को उजागर करते है।

प्रसंग

वह तोड़ती पत्थर एक मर्मस्पर्शी कविता है। इस कविता में कवि ‘निराला’ जी ने एक पत्थर तोड़ने वाली मजदूरिन के माध्यम से शोषित समाज के जीवन की विषमता का वर्णन किया है

व्याख्या

कवि कहते है, मैने एक महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखा। कवि इलाहाबाद के किसी रास्ते पर उस महिला को पत्थर तोड़ते हुए देखते है। वह एक ऐसे पेड़ के नीचे बैठी है, जहा छाया नहीं मिल रही आस पास भी कोई छायादार जगह नहीं हैं। इस प्रकार कवि शोषित समाज की विषमता का वर्णन करते है। ओर बताते है की मजदूर वर्ग अपना काम पूरी लग्न के साथ करते है। कवी महिला के रूप का वर्णन करते हुए कहते है, की महिला का रंग सावला है, परिपक्व अर्थात् युवा काल में आ गई है। आंखो में चमक, और मन अपने कार्य में लगा रखा हैं। और पत्थर तोड़ रही हैं। सूरज अपने चरम पर जा पहुंचा है, गर्मी बढ़ती जा रही है। कवि बताते है दिन में सबसे कष्टदायक समय यही हैं। धरती - आसमान सब इस भीषण गर्मी से झुलस रहे है। अचानक महिला की नज़र उस भवन की ओर जाती हैं जहां कवि है, उसे देख कर ऐसा प्रतीत हो रहा की उस सितार से मेरा हो, ओर उसकी ध्वनि कवि कनो को भी सुनाई दे रही है परन्तु महिला रो नहीं रही है। कवि बताना चाहते हैं की महिला अपनी गरीबी के कारण दुखी है परन्तु उसने अभी तक अपनी हिम्मत नहीं हारी है। अचानक महिला को अपने कार्य का स्मरण होता है और एकाएक एक फिर से अपने कार्य में लग जाती है। ओर केहरी है, में तोड़ती पत्थर।

विशेष

1) सरल भाषा का प्रयोग है।

2)मार्मिक कविता है।

3)शोषित वर्ग की दयनीय स्तिथि को दर्शाय है।