हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/अधिनायक

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हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका
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अधिनायक
रघुवीर सहाय

रघुवीर सहाय ने अपने काव्य के मध्य से साधारण व्यक्तियों के ऊपर हो रहे अन्याय और शोषण को दर्शाने का प्रयास किया है , अपनी व्यंग भाषा के साथ कवि ने गरीबों के प्रति अपनी प्रगतिशील विचारधारा का परिचय दिया है ।

प्रस्तुत कविता मे कवि ने यह दर्शाया है कि आजादी के बाद गरीबों की दयनीय दशा मे सुधार क्यों नहीं आया है, वह पहले भी दुखी था आज भी दयनीय स्थिति में जीने के लिए बाध्य है। देश के शासक लोगों के ऊपर कवि ने व्यंग किया है।

इस कविता का मुख्य उद्देश्य शासक वर्ग के आचरण को दिखाना हैं रघुवीर सहाय प्रयोगवादी कवि है। यह एक बनी बनाई परिपाटी पर काम नहीं करते बल्कि कुछ विशेष करने की कोशिश करते है। और जनसमूह के चेतना को जगाने का प्रयास करते हैं रघुवीर सहाय राष्ट्रीय, समाज, राजनीति और व्यक्ति का यथार्थ वर्णन करते है। राष्ट्रीय राजनीतिक घमासान में पीस रहे आम आदमी की पीड़ा को व्यक्त करते है,रघुवीर सहाय अधिनायक कविता के माध्यम से इस पीड़ा का व्यक्त करने का प्रयास किया है।

कवि कहता है जिस राष्ट्रगीत का हम गान करते हैं उसमें कौन है, जो हमारा भाग्य विधाता है ? हमारेे भाग्य को बनाने वाला या हमें जीवन दान देने वाला कौन है, कवि कहता है कि कोई हमें यह तो बताइए कि हमारे भाग्य का विधाता या रखवाला कौन है?

कवि ने साधारण जनता के जीवन की दशा को देखकर नेता और शासक पर व्यंग किया है कि ये लोग मखमल के चमकदार कपड़े पहनते हैं। चमकती गाड़ी में बैठ कर आते हैं साथ में बलम और तुरही पगड़ी के रूप में सैनिक एवं अंगरक्षक साधारण लोग होते है सड़क से गुजरते हैं । उनका स्वागत सत्कार होता है, सब झंडा फहराते हैं उनके सम्मान में चारों तरफ सजावट की जाती है और तोपों की सलामी दी जाती है। मगर इससे जनसाधारण को क्या मिलता है? यह गरीबों के मुंह से ही अपनी जय जयकार करवाते हैं, और गरीब करते हैं क्योंकि उन्हें करना है। कवि ने व्यंग भाषा का प्रयोग करके नेताओं और जनसाधारण के बीच के सामान्य दूरी का वर्णन किया है।

इस काव्य में राष्ट्रगान से महत्वपूर्ण कवि ने राष्ट्रीय भावना को माना है। लोकतंत्र में चुने गए प्रतिनिधि अपने आप एक तानाशााह की भूमिका में हैै भारतीय संविधान में लोकतांत्रिक सत्ता जनता के हाथ में हैै।लेकिन यहां के नेताओं ने उसको दोयम दर्जे का साबित कर दिया है। यहां की जनता दयनीय स्थिति में है और नंग धड़ंग पड़ी हुई है जिसके पास कोई भी संसाधन आवश्यकतानुसार नहींं है। यहां का हर व्यक्ति जो राष्ट्रीय गीत गाता है राष्ट्रगान को गाता हैैैै लेकिन राष्ट्रीय के संसाधनों से कोसों दूर पड़ा हुआ है।

कवि के मन में राष्ट्रगीत को लेकर एक उदासीनता का भाव स्पष्ट रूप से दिखता है वह देश को संपन्न तथा खुशहाल रुप में देखना चाहता है,परंतु वह इसकी जगह दुख, दयनीय स्थिति, विपन्नता ही पाता है जो उसके मन की पीड़ा को व्यक्त करता है आज चारों तरफ आजादी के बाद भी गरीबी का साम्राज्य ही देखने को मिलता है ,कवि कहता है कि गरीब के पास आज भी तन ढकने के लिए पर्याप्त कपड़ा नहीं है, पेट को भरने के लिए दो वक्त का भोजन उपलब्ध नहीं है,भूखे पेट सोने को मजबूर उसके रहने के लिए ढंग का घर नहीं है।

समाज को हाशिए पर धकेल दिया गया है इस काव्य में भी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर व्यंग किया गया है। जो राष्ट्रीय की कपोल कल्पना को आईना दिखा रहा है जो अधिनाायक शक्तिशाली है, वह जनता को डर मेंं जीने के लिए मजबूर कर रहा है तभी तो गाना ढोल बजवाता हैं और अपने प्रचार में सहयोगी बनाता है इस देश में सभी लोग हरचरना के पर्याय बन गए हैं।

1- काव्य की भाषा सरल है।

2- भाषा बनी बनाई परिपाटी पर कार्य नहीं करती वह कुछ नया करने का प्रयास करते है।

3- आम आदमी की पीड़ा व्यक्त होती है।

4- इनकी कविता में व्यंग का प्रयोग किया गया हैं।

5- एक प्रगतिशील विचारधारा को व्यक्त किया है।