हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/यह दीप अकेला
व्याख्या
[सम्पादन]यह दीप अकेला कविता प्रयोगवाद और नई कविता के प्रमुख कवि अज्ञेय द्वारा रचित है। अज्ञेय एक मनोविश्लेषणवादी तथा व्यक्तिवादी कवि हैं। अपनी कविताओं में उन्होंने मानव मन कि कुंठाओं तथा वासनाओं का वर्णन किया है। यह कविता अज्ञेय के व्यक्तिवाद में समाज या समूह को शामिल करती प्रतीत होती है।
इसमें अज्ञेय एक ऐसे दीप की बात करते हैं, जो स्नेह और गर्व से भरा है और इसीलिए मदमाता है। इस पूर्णता के बोध ने उसे अकेला कर दिया है। अकेला होकर कोई कितना भी पूर्ण और समृद्ध हो जाय वह सार्थक नहीं हो सकता है। इसलिए कवि चाहता है कि इस अकेले दीप को भी पंक्ति में शामिल कर दिया जाए। इससे इसकी महत्ता और सार्थकता बढ़ जाएगी।
यह दीप अकेला है परंतु स्नेह से भरा हुआ है। जिसके कारण उसमें गर्व है अर्थात गर्व से भरा हुआ है, और उसका यह गर्व उसकी पूर्णता की अपूर्णता को दर्शाता है। कवि चाहता है कि उसे उसी प्रकार के अन्य दीयों की पंक्ति में शामिल कर देना चाहिए तभी उसे सामूहिकता की शक्ति का बोध होगा। उसे अपनी पूर्णता के अधूरेपन का भी ज्ञान होगा। समूह में शामिल होकर वह बड़ी पूर्णता को प्राप्त कर सकेगा। यह दीया वास्तव में मनुष्य का प्रतीक है। व्यक्ति की दशा भी इस दीए की सी होती है। स्नेह, गर्व, एवं अभिमान होते हुए भी तब तक वह मजबूत नहीं बन पाता है जब तक वह समाज के साथ नहीं जुड़ता।
यह दीप ऐसी जनता के समान है, जिसने ऐसे गीत गाए हैं जो और कोई नहीं गा सकता। यह ऐसा पनडुब्बा है जिसने पानी में डुबकी लगाकर अनेक मोती लाए हैं, जैसा और किसी ने नहीं किया। यह यज्ञ की ऐसी समिधा है, जिसने ऐसी आग सुलगाई है जैसी और कोई नहीं सुलगा सकता। अज्ञेय ने दीपक के प्रतीक के लिए भी जन, पनडुब्बा तथा समिधा का प्रतीक चुना है। ये तीनो प्रतीक व्यक्ति की विशिष्टता का बोध कराने वाले हैं किंतु सामूहिकता की पूर्णता को भी व्यक्त करते हैं। व्यक्ति का अद्वीतीय गीत जनता का सामूहिक क्रांति गीत बनकर चरम पूर्णता को प्राप्त करता है। पनडुब्बा का एक मोती कई मोतियों के साथ मिलकर नई पूर्णता प्राप्त करता है। समिधा की निरंतरता यज्ञ को पूर्ण बनाती है। व्यक्ति अपनी अद्वितीयता तथा मैं, मेरा आदि अस्तित्व को छोड़कर समूह में समर्पित होता है तो एक बड़ी पूर्णता की सृष्टि करता है। जैसे एक दीया तो रौशनी देता है किंतु दीवाली का सौंदर्य की पूर्णता नहीं पा सकता जबतक कि वह समूह में न जुड़ जाय।
दूसरे परिच्छेद में अज्ञेय ने दीया या कवि व्यक्ति के लिए मधु, गोरस और अंकुर का प्रतीक चुना है। कवि कहता है यह काल के कटोरे में युगों तक संचित होने वाला मधु है। कवि अद्वीती गुणों वाले व्यक्ति के निर्माण की प्रक्रिया की ओर संकेत करता है जो एक दिन का निर्माण नहीं बल्कि वर्षों की साधना का परिणाम होता है। यह जीवन रूपी कामधेनु की उस गोरस (दूध) अथार्थ पवित्र दूध है, जो अमृत प्रदान करता है। यह उस अंकुर की तरह है जो धरती को फोड़कर सूर्य को निहारता है। यह सभी चीजें अपने स्वाभाविक रूप में है, स्वयं पैदा हुए हैं, यह एक दूसरे से सम्बन्ध है, अलग अलग है। यह मिलकर एक शक्ति का निर्माण कर सकते हैं। इसमें जीने की अदम्य क्षमता है। यह आत्मा उसी ब्रह्म का प्रतीक है, उसी की तरह अपार, सामर्थ्यवान है। लेकिन इस ब्रह्म को भी पूर्णतः प्राप्त करनी है तो इसको भी शक्ति को दे देना चाहिए।
यह, वह विश्वास है, जो आसानी से डिगने वाला नहीं है। यह, वह पीड़ा है जिसे और कोई नहीं नाप सकता, स्वयं वही नाप सकता है। व्यक्ति में विश्वास भी होता है और यह विश्वास अपनी लघुता में भी कांपता (हिलता) नहीं है। व्यक्ति अपनी पीड़ा की गहराई को भी भली-भांति जानता है। वह स्वयं उसे नापता भी है। किसी की निंदा, किसी का अपमान, अवज्ञा जैसे कड़वे अथवा जलाने वाली विशेषताएं इस दीये में नहीं हैं। अपितु यह दीया सदा द्रवित अर्थात करुणा से भरा हुआ चिरजागरूक अर्थात बहुत पहले से प्रेम से भरा हुआ है। वह दूसरों की और हमेशा हाथ उठाए हुए एवं अपनापन लिए हुए है।
यह जिज्ञासु, प्रबुद्ध अर्थात बुद्धि लिए हुए, गर्व में मदमाता दीया श्रद्धामय होता जा रहा है। किंतु यह दीया अकेला है, यदि इसे पंक्ति (समाज) में स्थान मिल जाए तो इसका जीवन सार्थक हो जाएगा। अतः इसे भक्ति को दे देना चाहिए।
विशेष
[सम्पादन]>तिहरे प्रतीक की कविता।
>आत्म विकास की कविता।
>कवि ने व्यक्ति की महत्ता को समाज से जोड़कर देखा है।
>'दीप' में प्रतीकात्मकता का समावेश है।
>दीप' व्यक्ति का प्रतीक है।
>पंक्ति' समाज का प्रतीक है।
>गाता गीत' में अनुप्रास अलंकार है।कविता पर प्रयोगवादी शैली का प्रभाव है इसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
>कवि ने अनेक उदाहरण देकर व्यक्ति की सत्ता का समाज में विलय आवश्यक बताया है।
- दीप मानव का प्रतीक हैं ।