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हिंदी पत्रकारिता/पत्रकारिता प्रबंधन और वितरण

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हिंदी पत्रकारिता
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प्रबंधन को अंग्रेजी में Management कहते हैं। किसी कार्य की पूर्ति करने के लिए सभी बातों को Manage करना पड़ता है। सभी बातों का किसी एक निश्चित कार्य पूर्ति के लिए समायोजन करना ही प्रबंधन है। आधुनिक काल में व्यापार, उद्योग, शैक्षिक या सामाजिक‌ या ‌निजी संगठनों में भी प्रबंधन महत्वपूर्ण माना गया है। पत्रकारिता आज मात्र समाज सेवा या मात्र सामाजिक जिम्मेदारी निभाने वाला संगठन नहीं रहा, बल्कि अब वह एक उद्योग की दृष्टि से देखा जाने लगा है। अपनी पत्रिका अनेक लोगों तक पहुँचे,जिससे पाठकों की संख्या बढ़े और विज्ञापन आदि द्वारा संगठन का मुनाफा मिले, यह प्रयास आजकल हर संगठन कर रहा है। आज अलग-अलग यंत्र-सामग्री, पैसा तथा श्रमशक्ति होने के बावजूद प्रबंधन के अभाव में अनेक पत्रिकाएँ घाटे में चल रही हैं। इसलिए पत्रकारिता में प्रबंधन महत्वपूर्ण माना गया है।


प्रबंधन विभाग (Management Department) :- समाचार पत्र के सभी विभागों में सुसूत्रता बनाए रखना, उनमें समन्वय निर्माण करना, प्रबंधन तथा प्रशासनिक व्यवस्था को निखारना, विज्ञापनदाताओं तथा एजंटों से संपर्क करना, समाचार पत्र का आर्थिक स्तर ऊँचा करने के लिए नित्य नई कल्पनाओं द्वारा पाठकों तथा विज्ञापनदाताओं को आकर्षित करना तथा मनुष्य बल का अधिकाधिक लाभ उठाना प्रबंधन विभाग का प्रमुख लक्ष्य होता है। इस विभाग में लेखा परीक्षण, विज्ञापन, वितरण, संस्करण वृद्धि आदि कार्य चलते रहते हैं। पाठकों का संपर्क सीधे संपादक से होता है। लेकिन विज्ञापन संस्था तथा वितरण व्यवस्था का संबंध सीधे प्रशासनिक व्यवस्था से रहता है।


समाचार पत्र के दफ्तर में प्रशासक अर्थात् प्रबंधक ही प्रमुख होता है। समाचार पत्र की प्रतिमा उसके प्रबंधन पर ही निर्भर होती है। समय का महत्व जानने वाला और समन्वय को बनाए रखने वाला प्रबंधक ही सफल प्रबंधक होता है। दफ्तर के सभी विभाग से उसका समान रूप से संपर्क रहता है। प्रशासनिक व्यवस्था की यह जिम्मेदारी है कि अन्य सभी विभागों को अपने कर्तव्यपूर्ति के लिए हमेशा प्रोत्साहित करें।


वितरण व्यवस्था :- समाचार-पत्र मुद्रित होने के पश्चात् यथाशीघ्र वह पाठकों के हाथ पहुंचे, यह वितरण व्यवस्था की जिम्मेदारी है। समाचार-पत्र की खपत या पत्रकारिता में आई कडी प्रतियोगिता के कारण वितरण व्यवस्था का महत्त्व बढ़ गया है। अपने समाचार-पत्र के पहले कोई अन्य समाचार-पत्र यदि पाठक के हाथ पडता है और यदि यह बार-बार होता रहता है, तो पाठक आगे चलकर अपने समाचार-पत्र की ओर पीठ कर देते हैं। चाहे फिर हमारा समाचार-पत्र कितना भी आकर्षक क्यों न हो? रातभर कड़ी मेहनत से बनाया गया समाचार-पत्र, जिसकी बिक्री पहले घंटे-दो-घंटे में न हो जाए, तो बाद में वह वहीं का वहीं पड़ा रह जाता है।