हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)/हिन्दी भाषा : क्षेत्र और बोलियाँ
यह हिन्दी ऐतिहासिक दृष्टि से युग - युग की मध्यदेशी भाषाओं -- संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्रंश आदि की उत्राधिकारिणी रही है। इन सब की संपत्ति शब्दावली, मुहावरे, लोकोक्तियाँ, साहित्य और साहित्य की विभिन्न विधाएं। यह भाषाएं अपने - अपने यौवन काल में मध्य देशीय होते हुए भी देशव्यापी रही है। वस्तुत: हिन्दी भी सारे देश में व्याप्त है। व्यवहार में यह राष्ट्रभाषा अवश्य है, परन्तु देश के मध्य से दूर के कुछ लोगों के राजनीतिक स्वार्थों के कारण राज्यों द्वारा इसे राष्ट्रभाषा की मान्यता प्राप्त नहीं हो पायी है। इसीलिए अभी यह नहीं कहा जा सकता कि हिन्दी का क्षेत्र सारा भारत है। वह मध्य देश की भाषा है इसे कोई इन्कार नहीं कर सकता। पश्चिम में अंबाला - छावनी ( हरियाणा और पंजाब की सीमा) से लेकर पूर्व में पूर्णिया (बिहार और बंगाल की बीच की सीमा) तक तथा उत्तर में बद्रीनाथ की तिब्बत (चीन की दक्षिणी सीमा) से लेकर खंडवा (मध्यप्रदेश की दक्षिणी सीमा) तक ही हिन्दी बोली जाती है। लंबे - चौड़े क्षेत्र के अंतर्गत हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, एवं उत्तरांचल सम्मिलित है। इस पूरे क्षेत्र को ही हिन्दी प्रदेश कहते है। हिन्दी प्रदेश के बाहर भी किन्हीं दूर - दराज के पहाड़ी एवं जंगली इलाकों को छोड़कर सारे भारत में हिन्दी बोली और समझी जाती है।
भारत की भाषाओं पर बहुत व्यापक और सर्वाधिक कार्य करने वाले विद्वानों सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने 20 वी शताब्दी के शुरू में हिन्दी का क्षेत्र अंबाला से लेकर पूर्व में बनारस तक और उत्तर में नैनीताल की तलहट्टी से लेकर दक्षिणी में बालाघाट तक निश्चित किया गया था। इससे प्रकट है कि राजस्थानी, बिहारी और पहाड़ी बोलियों के संबंध को ठीक तरह से नहीं आँक सके। आर्थिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, साहित्यिक, धार्मिक परिस्थितियों ने हिन्दी को एक बहुत बड़े क्षेत्र में फैलने का अवसर दिया है।
इन क्षेत्रों में मारवाड़ी, जयपूरी, मगही, मैथिली, भोजपुरी, बिहारी, कुमाऊनी, गढ़वाली बोलियां तो हैं किंतु भाषाओं में इसका नाम नहीं गिना का सकता। सबकी भाषा हिन्दी ही है। अपनी पुस्तक राजस्थानी भाषा सुप्रसिद्ध भाषा वैज्ञानिक डाॅ सुनीतिकुमार चटर्जी ने हिन्दी को ही राजस्थानी कहा है। कलकत्ता के लोग राजस्थानी को मारवाड़ी हिन्दी कहते हैं; और बम्बई तथा पंजाब में बिहारी हिन्दी का नाम पुर्वीय हिन्दी प्रचलित है। लोकमत और व्यवहार की दृष्टि से गढ़वाली और कुमाऊनी हिन्दी की बोलियां है। संविधान में भी राजस्थानी, बिहारी, या पहाड़ी नाम की कोई भाषा नहीं गिनाई गई है। मसलन हिन्दी का क्षेत्र विस्तार भारत में व्यापक है।
हिन्दी की प्रमुख उपभाषाएं और बोलियां
[सम्पादन]उपभाषा | बोलियां |
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पूर्वी हिन्दी | अवधी, बघेली, छत्तीसगढ़ी |
पश्चिमी हिन्दी | खड़ी बोली, ब्रजभाषा, बुंदेली, हरियाणवी(बाँगरु), कन्नौजी |
राजस्थानी हिन्दी | मारवाड़ी, जयपुरी, मेवाती, मालवी |
बिहारी हिन्दी | मैथिली, मगही, भोजपुरी |
पहाड़ी हिन्दी | गढ़वाली, कुमाऊनी, {नेपाली} |