हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/अन्य कृष्ण भक्त कवि/रहीम (1556-1627)

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रहीम (पूरा नाम अब्दुर्रहीम खानखाना, जन्म-1556) की गणना कृष्णभक्त कवियों में ही की जा सकती है। रहीम ने बरवै नायिका भेद भी लिखा है, जिससे उनकी यह रचना तो निश्चित रूप से रीति काव्य की कोटि में रखी जाएगी, किंतु रहीम को भक्त हृदय मिला था। उनके भक्तिपरक दोहे उनके व्यक्ति और रचनाकार का वास्तविक प्रतिनिधित्व करते हैं । कहते हैं, उनके मित्र तुलसी ने बरवै रामायण की रचना रहीम के 'बरवै' काव्य से उत्साहित होकर की थी। रहीम सम्राट अकबर के प्रसिद्ध सेनापति बैरम खाँ के पुत्र शथे। वे स्वयं योद्धा थे। गंग ने रहीम पर जो छप्पय लिखा है, उससे प्रकट होता है कि रहीम पराक्रमी सेनानी थे-

खलभलित सेस कवि गंग भन-अमित तेज रवि रथ खस्यो।

खानान खान बैरम सुबन जबहिं क्रोध करि तंग कस्यो ।

रहीम अरबी, फ़ारसी, संस्कृत आदि कई भाषाओं के जानकार थे। वे बहुत उदार, दानी और करुणावान थे। अंत में उनकी मुगल दरबार से नहीं पटी, और अनुश्रुति के अनुसार उनके अंतिम दिन तंगी में गुजरे। रहीम की अन्य रचनाएँ हैं- रहीम दोहावली या सतसई, श्रृंगार सोरठा, मदनाष्टक और रासपंचाध्यायी। उन्होंने खेल कौतुकम् नामक ज्योतिष का भी ग्रंथ रचा है, जिसकी भाषा संस्कृत-फ़ारसी मिश्रित है। रहीम ने तुलसी के समान अवधी और ब्रज, दोनों में अधिकारपूर्वक काव्य-रचना की है। रहीम के भक्ति और नीति के दोहे आज भी लोगों की जुबान पर हैं।