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हिंदी साहित्य का सरल इतिहास/भक्तिकाल/नंददास( 16 वीं शती)

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नंददास सोलहवीं शती के अंतिम चरण में विद्यमान थे इनके विषय में भक्तमाल में लिखा है- चंद्रहास-अग्रज सुहृद परम प्रेम- पथ में पगे। दो सौ बावन वैष्णवन की वार्ता के अनुसार ये तुलसीदास के भाई थे, किंतु अब यह बात प्रामाणिक नहीं मानी जाती। इनके काव्य के विषय में यह उक्ति प्रसिद्ध हैं- 'और कवि गढ़िया, नंददास जड़िया।' इससे प्रकट होता है कि इनके काव्य का कला-पक्ष महत्त्वपूर्ण है। इनकी प्रमुख कृतियों के नाम इस प्रकार हैं- रासपंचाध्यायी, सिद्धांत पंचाध्यायी, भागवत् दशम स्कंध, रुक्मिणीमंगल, रूपमंजरी, रसमंजरी, दानलीला, मानलीला आदि। इनके यश का आधार रासपंचाध्यायी है। रासपंचाध्यायी भागवत् के 'रासपंचाध्यायी' अंश पर आधारित है। यह रोला छंद में रचित है। कृष्ण की रासलीला का वर्णन इस काव्य में कोमल एवं सानुप्रासिक पदावली में किया गया है, जो संगीतात्मकता से युक्त है-

ताही छन उडुराज उदित रस-रास सहायक,

कुंकुम-मंडित-बदन प्रिया जनु नागरि नायक।

कोमल किरण अरुन मानो बन व्यापि रही यों,

मनसिज खेल्यो फागु घुमड़ि धुरि रहयों गुलाल ज्यों ।


भँवरगीत में उन्होंने रोला छंद के साथ ध्रुवक जोड़कर उसे और अधिक संगीतात्मक बना दिया है। सिद्धांत पंचाध्यायी भक्ति सिद्धांत का परिचायक ग्रंथ है और रसमंजरी नायिका भेद का। रूपमंजरी में इसी नाम की एक भक्त महिला का चरित्र वर्णित है। नंददास ने अनेक काव्य-रूपों में रचना की है। वे काव्य शास्त्र से सुपरिचित कवि ज्ञात होते हैं।

अष्टछाप के शेष कवियों ने भी लीला गान के पद कहे हैं, जो प्रधानत: श्रृंगारी हैं। राधा और कृष्ण के रूप एवं श्रृंगार के साथ-साथ उनके चरित का गुणगान इन कवियों का विषय रहा है। इनकी रचनाएँ बहुत कुछ समान हैं।