हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )/महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण

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हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल )
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महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण[सम्पादन]

हिन्दी नवजागरण का तीसरा चरण महावीर प्रसाद द्विवेदी और उनके सहयोगियों का कार्यकाल है। सन् 1900 में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ और 1920 में द्विवेदी जी उससे अलग हुए। इन दो दशकों की अवधि को द्विवेदी युग कहा जा सकता है इस युग की सही पहचान तभी हो सकती है जब हम एक तरफ गदर और भारतेंदु युग से उसका संबंध पहचानें और दूसरी तरफ छायावादी युग विशेष रूप से निराला के साहित्य से उसके संबंध पर ध्यान दें। द्विवेदी जी ने‌ अंग्रेजों की साम्राज्यवादी व्यवस्था, भारत की अर्थव्यवस्था, किसानों की दयनीय स्थिति, जैसे तत्कालीन गंभीर विषयों को अपने लेखों का मुख्य विषय बनाया है।

प्रसिद्ध है कि द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा का परिष्कार किया लेकिन द्विवेदी जी ने पत्रिका में प्रकाशित लेखों से अनेक उद्धरण सजायें जिससे उनके साहित्य से परिचित व्यक्ति भी उनके मौलिक चिंतन के महत्व को समझ ले। इस भूमिका में उनमें से कुछ उद्धरण दोहराना प्रासांगिक है। एक उद्धरण इस प्रकार है -यूरोप के कुछ मदान्ध‌ मनुष्य समझते हैं कि परमेश्वर ने एशिया के निवासियों पर अधिपत्य करने के लिए ही उनकी सृष्टि की है। जिस एशिया ने बुद्ध,राम और कृष्ण को उत्पन्न किया है,उसने दूसरों की गुलामी का ठेका नहीं ले रखा।

वही दूसरा उद्धरण इस प्रकार है- इस दुनिया की सृष्टि एक ऐसी ईश्वर ने की है जिसकी कोई जाति नहीं, जो उच्च-नीच का कायल नहीं, जो ब्राह्मण, अब्राह्मण, चांडाल और कीड़ों-मकोड़ों तक में अपनी सत्ता प्रकट करता है। छुआछूत को मानने वालों को ऐसे ईश्वर के संसार को छोड़ देना चाहिए। यहां सदियों से चले आ रहे सामाजिक रूढ़िवाद को नया युग ही चुनौती दे रहा है।भारतेंदु युग से शुरू हुई यह मांग द्विवेदी युग में अधिक व्यापक हो गई।

द्विवेदी जी ने अपने साहित्यिक जीवन के आरंभ में पहला काम यह किया कि उन्होंने अर्थशास्त्र का अध्ययन किया उन्होंने जो पुस्तक बड़ी मेहनत से लिखी वह है- संपत्तिशास्त्र। इसके अंश 1907 में सरस्वती में प्रकाशित हुए और पूरी पुस्तक 1908 में प्रकाशित हुई। यह ग्रंथ अर्थशास्त्र की नयी-पुरानी पाठ्य पुस्तकों से भिन्न है। इसका उद्देश्य है- समकालीन भारत के अर्थतंत्र का अध्ययन करना। जिसका महत्व तब ज्ञात होगा जब इसे रजनी पामदत्त की पुस्तक आज का भारत' के साथ मिलाकर पढ़ा जाएगा। सम्पतिशास्त्र की भूमिका यों शुरू होती है- हिन्दुस्तान एक सम्पतिहीन देश है। यहाँ सम्पति की बहुत कमी है। जिधर आप देखेंगे उधर ही आँखो को दरिद्र देवता का अभिनय किसी न किसी रूप में अवश्य दिख पड़ेगा।

द्विवेदी जी की विवेचना के केन्द्र में भारत की निर्धन जनता है। भारत की निर्धनता का मुख्य कारण अंग्रेजी राज है। जो शास्त्र इस प्रश्न के प्रति पाठकों के सजग नहीं करता कि देश की जनता निर्धन क्यों है और इस बात का उत्तर नहीं देता कि यह निर्धनता कैसे दूर की जाए। वह शास्त्र व्यर्थ है। उनके अनुसार शास्त्र वह है जो जीवन की व्यवहारिक समस्याओंं को व्यक्त करे।

राजनीति और अर्थशास्त्र के साथ उन्होंने आधुनिक विज्ञान से परिचय प्राप्त किया और इतिहास और समाजशास्त्र का अध्ययन गहराई से किया। इसके साथ भारत के प्राचीन दर्शन और विज्ञान की ओर ध्यान दिया और यह जानने का प्रयत्न किया कि हम अपने चिंतन में कहाँ आगे बढ़े हुए और कहाँ पिछड़े हैं। इस तरह की तैयारी उनसे पहले किसी संपादक या साहित्यकार ने नहीं की थी। परिणाम यह हुआ कि हिन्दी प्रदेश में नवीन समाज चेतना के प्रसार के लिए सबसे उपर्युक्त सरस्वती के संपादक बनने से पहले भी काफी प्रसिद्ध हो चुके थे। संपादक‌ बनने के बाद उन्होंने अपनी संगठन क्षमता का परिचय दिया। सरस्वती के माध्यम से उन्होंने लेखकों का एक ऐसा दल तैयार किया जो इस नवीन चेतना के प्रसार कार्य में उनकी सहायता करें अपने अथक परिश्रम से उन्होंने सरस्वती को एक आदर्श पत्रिका बना दिया।

द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा के विकास में अनेक पक्षों‌ पर ध्यान दिया। भारत में अंग्रेजी की स्थिति, भारतीय भाषाओं का शिक्षा का माध्यम बनाने की समस्या, भारतीय भाषाओं के बीच संपर्क भाषा की समस्या, हिन्दी-उर्दू की समानता और आपसी भेद हिन्दी और जनपद भाषाओं के संबंध आदि पर उन्होंने बहुत गहराई से विचार किया। द्विवेदी जी अंग्रेजी को शिक्षा का माध्यम बनाने के प्रबल विरोधी थे। वह बुद्धिमान और वैज्ञानिक विचार पद्धति के समर्थक और रहस्यवाद के विरोधी थे। वह भारत के उद्योगीकरण के पक्षपाती थे।


संदर्भ[सम्पादन]

  1. महावीर प्रसाद द्विवेदी और हिन्दी नवजागरण- राम विलास शर्मा---- पृष्ठ संख्या(15-60)

रचनाएं - अनूदित काव्य --- अनुवाद आधार ग्रंथ विनय विनोद 1889 ई.- भृतहरि के 'वैराग्य शतक' का दोहों में अनुवाद विहार वाटिका 1890 ई.- गीत गोविन्द का भावानुवाद स्नेह माला 1890 ई.- भृतहरि के 'श्रृंगार शतक' का दोहों में अनुवाद श्री महिम्न स्तोत्र 1891 ई.- संस्कृत के 'महिम्न स्तोत्र का संस्कृत वृत्तों में अनुवाद गंगा लहरी 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ की 'गंगा लहरी' का सवैयों में अनुवाद ऋतुतरंगिणी 1891 ई.- कालिदास के 'ऋतुसंहार' का छायानुवाद सोहागरात अप्रकाशित- बाइरन के 'ब्राइडल नाइट' का छायानुवाद कुमारसम्भवसार 1902 ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भवम' के प्रथम पाँच सर्गों का सारांश। अनूदित गद्य --- भामिनी-विलास 1891 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'भामिनी विलास' का अनुवाद अमृत लहरी 1896 ई.- पण्डितराज जगन्नाथ के 'यमुना स्तोत्र' का भावानुवाद बेकन-विचार-रत्नावली 1901 ई.- बेकन के प्रसिद्ध निबन्धों का अनुवाद शिक्षा 1906 ई.- हर्बर्ट स्पेंसर के 'एज्युकेशन' का अनुवाद 'स्वाधीनता' 1907 ई.- जॉन स्टुअर्ट मिल के 'ऑन लिबर्टी' का अनुवाद जल चिकित्सा 1907 ई.- जर्मन लेखक लुई कोने की जर्मन पुस्तक के अंग्रेज़ी अनुवाद का अनुवाद हिन्दी महाभारत 1908 ई.-'महाभारत' की कथा का हिन्दी रूपान्तर रघुवंश 1912 ई.- 'रघुवंश' महाकाव्य का भाषानुवाद वेणी-संहार 1913 ई.- संस्कृत कवि भट्टनारायण के 'वेणीसंहार' नाटक का अनुवाद कुमार सम्भव 1915 ई.- कालिदास के 'कुमार सम्भव' का अनुवाद मेघदूत 1917 ई.- कालिदास के 'मेघदूत' का अनुवाद किरातार्जुनीय 1917 ई.- भारवि के 'किरातार्जुनीयम्' का अनुवाद प्राचीन पण्डित और कवि 1918 ई.- अन्य भाषाओं के लेखों के आधार पर प्राचीन कवियों और पण्डितों का परिचय आख्यायिका सप्तक 1927 ई.- अन्य भाषाओं की चुनी हुई सात आख्यायिकाओं का छायानुवाद मौलिक काव्य--- ✔️देवी स्तुति-शतक 1892 ई. ✔️कान्यकुब्जावलीव्रतम 1898 ई. समाचार पत्र सम्पादन स्तव: 1898 ई. नागरी 1900 ई. ✔️कान्यकुब्ज- अबला-विलाप 1907 ई. ✔️काव्य मंजूषा 1903 ई. ✔️सुमन 1923 ई. द्विवेदी काव्य-माला 1940 ई. ✔️कविता कलाप 1909 ई.| मौलिक गद्य -- तरुणोपदेश (अप्रकाशित) हिन्दी शिक्षावली तृतीय भाग की समालोचना 1901 ई. वैज्ञानिक कोश 1906 ई., 'नाट्यशास्त्र' 1912 ई. विक्रमांकदेवचरितचर्चा 1907 ई. ✔️हिन्दी भाषा की उत्पत्ति 1907 ई. ✔️सम्पत्तिशास्त्र 1907 ई. ✔️कौटिल्य कुठार 1907 ई. ✔️कालिदास की निरकुंशता 1912 ई. ✔️वनिता-विलाप 1918 ई. औद्यागिकी 1920 ई. ✔️रसज्ञ रंजन 1920 ई. कालिदास और उनकी कविता 1920 ई. ✔️सुकवि संकीर्तन 1924 ई. अतीत स्मृति 1924 ई. ✔️साहित्य सन्दर्भ 1928 ई. अदभुत आलाप 1924 ई. महिलामोद 1925 ई. आध्यात्मिकी 1928 ई. वैचित्र्य चित्रण 1926 ई. साहित्यालाप 1926 ई. विज्ञ विनोद 1926 ई. ✔️कोविद कीर्तन 1928 ई. विदेशी विद्वान् 1928 ई. प्राचीन चिह्न 1929 ई. चरित चर्या 1930 ई. पुरावृत्त 1933 ई. दृश्य दर्शन 1928 ई. आलोचनांजलि 1928 ई. चरित्र चित्रण 1929 ई. पुरातत्त्व प्रसंग 1929 ई. ✔️साहित्य सीकर 1930 ई. ✔️विज्ञान वार्ता 1930 ई. ✔️वाग्विलास 1930 ई. संकलन 1931 ई. ✔️विचार-विमर्श 1931 ई.