आर्थिक भूगोल/सूती वस्त्र उद्योग
कपास न केवल भारत की बल्कि पूरे विश्व की सबसे महत्वपूर्ण फाइबर फसल है। यह सूती कपड़ा उद्योग को मूल कच्चा माल (कपास फाइबर)[१] प्रदान करता है। इसके बीज (बिनोला) का उपयोग वनस्पति उद्योग में किया जाता है और दुधारू पशुओं को बेहतर दूध प्राप्त करने के लिए चारे के हिस्से के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।कपास बीज का पांचवां हिस्सा कच्चे प्रोटीन है, जो कुल विश्व प्रोटीन की आपूर्ति का 5 से 6 प्रतिशत है।कपड़ा बनाने के लिए सूती फाइबर का उपयोग प्राचीन मिस्र के लोगों को ज्ञात था, और सदियों से कपास चीन, भारत और मध्य एशिया का प्रमुख कपड़ा रहा है।लेकिन 18 वीं शताब्दी तक यूरोप में सूती कपड़ा प्रचलन में बना रहा, जब कपास की मशीनों और मशीनीकृत कताई और बुनाई प्रक्रियाओं के आविष्कार ने इसे सस्ते में बड़े पैमाने पर उत्पादन करने की अनुमति दी। इस प्रकार, 19 वीं शताब्दी में, सूती कपड़ा उद्योग न केवल शुरू हुआ बल्कि यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में तेजी से विकसित हुआ, जिसके परिणामस्वरूप दुनिया के विभिन्न हिस्सों में कपास की खेती में वृद्धि हुई।
कपास के प्रकार
[सम्पादन]गॉसिपियम परिवार के पौधों के बीजों के आसपास के बालों से कपास निकाली जाती है। पौधे के कई प्रकार हैं, जिनमें से कुछ यूरेशिया में और कुछ अमेरिका में उत्पन्न हुईं, जबकि आधुनिक किस्मों का विकास प्रजनन(breeding)और संकरण(hybridisation) द्वारा किया गया है।
फाइबर की मुख्य लंबाई के आधार पर,[२] कपास के तीन मुख्य प्रकार हैं:-
- लंबी रेशे वाली कपास(Long Staple)
- मध्य रेशे वाली कपास(Midium Staple)
- छोटे रेशे वाली कपास(Short Staple)
लंबी रेशे वाली कपास:- लम्बे रेशे वाले कपास सबसे सर्वोत्तम प्रकार के होते हैं, जिसकी लम्बाई 5 सें.मी. से अधिक होती है। इससे उच्च कोटि का कपड़ा बनाया जाता है। तटीय क्षेत्रों में पैदा होने के कारण इसे 'समुद्र द्वीपीय कपास' भी कहते हैं।
मध्य रेशे वाली कपास:-मध्य रेशे वाली कपास, जिसकी लम्बाई 3.5 से 5 सें.मी. तक होती है। इसे 'मिश्रित कपास' भी कहते है।
छोटे रेशे वाली कपास:-इसके रेशे की लम्बाई 3.5 सें.मी. तक होती है।
भारत में सूती वस्त्र मिल
[सम्पादन]आधुनिक ढंग की सूती वस्त्र की पहली मिल की स्थापना 1818 में कोलकता के समीप फोर्ट ग्लास्टर में की गयी थी,परन्तु यह असफल रही थी।[३] पुनः 1851 में मुम्बई में एक मिल की स्थापना की गयी, परंतु यह भी असफल रही। सबसे पहला सफल आधुनिक कारख़ाना 1854 में मुम्बई में ही कावसजी डाबर द्वारा खोला गया जिसमें 1856 में उत्पादन आरंभ हुआ। इसके बाद भारत में सूती वस्त्र उद्योग के विकास मार्ग प्रशस्त हो गया एवं वर्ष 1988 तक भारत में इस उद्योग से सम्बन्धित 1227 (1995 में) मिलों की स्थापना की जा चुकी थी, जिसमें 771 मिलों मे केवल सूत की कताई होती थी एवं 283 मिलें कताई के साथ ही वस्त्र निर्माण करने का कार्य करती थी।
उद्योग की स्थापना को प्रभावित करने वाले कारक
[सम्पादन]सूती वस्त्र उद्योग निम्नलिखित कारकों के द्वारा प्रभावित होते हैं:-
- कच्चे माल:- सूती वस्त्र उद्योग के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक कच्चा माल है। इसका कच्चा माल मुख्य रूप से कपास होता है। विश्व के बहुत से भागों में तथा कपास उत्पादक क्षेत्रों में विकसित हुआ है। भारत के बम्बई, अहमदाबाद तथा संयुक्त राज्य अमेरिका के कपास की पेटी में विकसित उद्योग इसके प्रमुख उदाहरण है। कपास एक हल्का कच्चा माल है जिसके भार का हृास नहीं होता हैं। अतः इसे कम परिवर्तन व्यय पर दूर तक ले जाया जा सकता है। [४]ब्रिटेन में कपास बिल्कुल नहीं होता फिर भी विश्व में आधुनिक सूती वस्त्र उद्योग सबसे पहले वहीं पर स्थापित किया गया है। कपास के अतिरिक्त धागे तथा कपड़ों की रंगाई और धुलाई के लिए विभिन्न प्रकार के रंगों एवं रासायनिक पदार्थों की आवश्यकता होती है यह भी सूती वस्त्र उद्योग के कच्चे माल के रूप में जाने जाते हैं और यह भी आवश्यक कच्चे माल है।
- शक्ति के साधन:- किसी भी उद्योग में चालक शक्ति प्राण संचार करती है। अधिकांशतः सूती वस्त्र उद्योग में कोयले से चालक शक्ति प्राप्त की जाती है। इसलिए यह उद्योग कोयला क्षेत्रों के निकट स्थापित किया जाता है। ब्रिटेन के लंकाशायर में सूती वस्त्र उद्योग का विकास इसका अच्छा उदाहरण है।यदि कोयला निकट ना हो तो उसे अन्य क्षेत्रों से प्राप्त करने की सुविधा होनी चाहिए। उदाहरणतः मुंबई के निकट कोई कोयला क्षेत्र नहीं है और यहां पर अफ्रीका से कोयला प्राप्त किया जाता है। अब कोयले के स्थान पर जल विद्युत का उपयोग अधिक होने लगा है। यह कोयले की अपेक्षा सस्ती होती है इसके प्रयोग से गंदगी नहीं फैलती और वातावरण का प्रदूषण नहीं होता है। संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यू इंग्लैंड राज्य, जापान,स्विट्जरलैंड, इटली, भारत आदि देशों के अधिकांश कारखाने जल विद्युत से ही चलते हैं।
- सस्ता परिवहन:-जिन देशों में सस्ता परिवहन की सुविधा होती है, उनमें कपास की उपज न होने पर भी सूती वस्त्र उद्योग विकसित किया जा सकता है, क्योंकि सस्ते परिवहन की सहायता से यह हल्का कच्चा माल विदेशों से आयात किया जा सकता है। ब्रिटेन को सस्ते परिवहन के कारण ही भारत, पाकिस्तान, मिस्र, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों से कपास प्राप्त होती है। जापान भी परिवहन की सुविधा के कारण विदेशों से कपास का आयात करके सूती वस्त्र उद्योग को चलाता है।
- अनुकूल जलवायु:-शुष्क जलवायु में धागा बार बार टूटता रहता है जिससे सूत काटने तथा कपड़ा बुनने में बड़ी कठिनाई आती है। अतः इसके लिए आद्र जलवायु तथा समुद्री समीर उपयुक्त होती है।यही कारण है कि अधिकांश सूती वस्त्र उद्योग समुंद्र के निकट या आद्र जलवायु वाले क्षेत्रों में स्थापित किए जाते हैं।आजकल शुष्क जलवायु वाले इलाकों में कृत्रिम आद्रीकरण से भी यह उद्योग चलाया जाता है, परंतु इस पर व्यय अधिक होता है। अनुकूल जलवायु के कारण ही ब्रिटेन, जापान, रूस तथा भारत के महाराष्ट्र व गुजरात में यह उद्योग उन्नति कर रहा है। इसके अतिरिक्त जलवायु का स्वास्थ्यवर्धक होना भी अनिवार्य है जिससे श्रमिकों तथा प्रबंधकों का स्वास्थ्य ठीक रहे तथा वे अधिक उत्पादन दे सकें।
- श्रम :- सूती वस्त्र उद्योग में कुल उत्पादन लागत का बहुत बड़ा हिस्सा श्रम पर खर्च किया जाता है। इसलिए इस उद्योग के लिए सस्ते तथा कुशल सॉन्ग का प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होना अनिवार्य है। अनुमान है कि विश्व में सबसे अधिक श्रम वस्त्र उद्योग में लगा हुआ है। यही कारण है कि उद्योग अधिक जनसंख्या वाले क्षेत्रों में स्थापित किया जाता है।
- जलापूर्ति :- सूती वस्त्र उद्योग में वस्त्रों की धुलाई, रंगाई, छपाई, कलफ करने आदि के लिए बड़ी मात्रा में शुद्ध जल की आवश्यकता होती है। अतः यह उद्योग जल आपूर्ति के स्रोत के निकट ही स्थापित किया जाता है। सामान्यतः नदियों, तालाबों तथा नलकूप आदि से जल प्राप्त किया जा सकता है।
- पूंजी :- इस उद्योग में पर्याप्त पूंजी की आवश्यकता होती है। ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका,जापान आदि देशों में इस उद्योग के विकास में पूंजी निवेश का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। किसी भी उद्योग की स्थापना के लिए पूंजी निवेश होना अनिवार्य है।
- बाजार :-यदि बाजार तथा कपास उत्पादक क्षेत्रों में अन्य कारकों की अनुकूलता एक जैसी हो तो इस उद्योग की अवस्थिति में बाजार का अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बकरे की सुविधा के साथ-साथ परिवर्तनशील मांग तथा फैशन के अनुसार उत्पादन में परिवर्तन किया जा सकता है।ब्रिटेन तथा जापान में कपास की उपज ना होते हुए भी बाजार का लाभ उठाने के लिए या उद्योग स्थापित किया गया। ब्रिटेन के भूतपूर्व उपनिवेशों में यहां का बहुत सा कपड़ा बिकता है और जापान को दक्षिणी पूर्वी एशिया के देशों में बाजार की बहुत सुविधा मिली है। भारत, रूस तथा कुछ अन्य देशों में घरेलू खपत के कारण यह उद्योग बहुत उन्नति कर गया है।
- सरकारी प्रोत्साहन :-किसी भी देश की सरकार उद्योग को प्रोत्साहन देकर उसके विकास में सहायता कर सकती है। भारत में बहुत से वस्त्र उद्योगों के विकास का श्रेय सरकार को जाता है।ब्रिटेन में राष्ट्रीय आय में वृद्धि करने के लिए सरकार ने इस उद्योग को प्रोत्साहित किया। वहां की सरकार ने अपने उपनिवेशों में सूती वस्त्रों को बाजार प्रदान करके इसकी विशेष सहायता की है।
विश्व में सूत तथा सूती वस्त्रों का उत्पादन एवं वितरण
[सम्पादन]यद्यपि कुटीर उद्योग के रूप में सूती धागा तथा सूती वस्त्रों का निर्माण लगभग सभी उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय देशों में किया जाता है तथा मशीनों द्वारा बड़े उद्योग के रूप में यह उद्योग 40-50 देशों में ही प्रचलित है। इस समय यह चीन, भारत, रूस, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि प्रमुख उत्पादक देश है।
चीन
[सम्पादन]कुटीर उद्योग के रूप में चीन में सूती वस्त्र का उत्पादन प्राचीन काल से चला आ रहा है। चीन में पहला आधुनिक कारखाना सन् 1890 में स्थापित हो गया था, परंतु वास्तविक विकास सन् 1894 में चीन-जापान युद्ध की संधि के बाद ही शुरू हुआ। 1914-22 कि अवधि में अधिकांश उद्योग जापानियों के अधिकार में था। 1920 तक शंघाई बहुत बड़ा केंद्र हो गया था जहां देश के 80% तकुए थे।1920-30 के दशक में इस उद्योग का विकेंद्रीकरण शुरू हुआ परंतु सन 1949 तक चील के आधे तकुए शंघाई में स्थित थे।1949 के बाद कम्युनिस्ट प्रशासन के प्रारंभिक काल में बहुत सी पूंजी तथा मशीनें हांगकांग चली गई। 1950 के बाद चीन के सूती वस्त्र उद्योग में तीव्र गति से प्रगति हुई और 1960 तक चीन में तकुए की संख्या तत्कालीन सोवियत संघ से अधिक हो गई। 1965-66 में चीन विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक हो गया।इस समय बेचैन विश्व का लगभग पांचवां भाग सूत तथा वस्त्र तैयार करके विश्व में प्रथम स्थान पर है। चीन में सूती वस्त्र उद्योग की प्रगति के निम्नलिखित कारण है:-
- चीन विश्व का सबसे बड़ा कपास का उत्पादक है और इस समय विश्व की एक तिहाई से भी अधिक कपास पैदा करता है। क्योंकि इस उद्योग के लिए कच्चा माल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध की आवश्यकता होती है।
- चीन में कोयले के विस्तृत भंडार हैं जिससे कपड़ा मिलों को प्रचुर मात्रा में चालक शक्ति प्राप्त हो जाती है। ह्वागं-हो, यांग्टूसी आदि नदियों से जल विद्युत शक्ति भी प्राप्त हो जाती है।
- चीन घनी जनसंख्या वाला देश है जिससे श्रम प्रचुर मात्रा में मिल जाते हैं। इससे सस्ते वस्त्रों की घरेलू मांग भी बढ़ती है।
- चीन में वस्त्र उद्योग प्राचीन काल से चला आ रहा है। इससे इसे पूर्वाआरंभ का लाभ मिलता है और कुशल तथा अर्ध कुशल कारीगर बड़ी मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं।
भारत
[सम्पादन]चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है। यह भारत का महत्वपूर्ण उद्योग में शामिल है। भारत की 16% औद्योगिक पूंजी इस उद्योग में लगी हुई है। भारत में 80 से भी अधिक नगरों में या उद्योग विकसित है। [५]मुख्य उत्पादक केंद्र महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, बिहार, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा कर्नाटक में स्थित है।भारत में सूती वस्त्रोद्योग लगभग 100 नगरों में वितरित है, फिर भी इसके प्रमुख केंद्र पंचभुज प्रदेश के अंतर्गत हैं। इस पंचभुज के पाँच बिंदु- अहमदाबाद, मुंबई, शोलापुर, नागपुर और इंदौर-उज्जैन हैं। इनमें से चार गुजरात एवं महाराष्ट्र जैसे तटवर्ती राज्यों में स्थित हैं। अन्य तटीय राज्यों जैसे— कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल में भी सूती वस्त्रों का उत्पादन किया जाता है।
देश में सूती वस्त्रो उद्योग में महाराष्ट्र और गुजरात अग्रणी राज्य हैं। अकेले महाराष्ट्र में भारत का 38% कपड़ा तथा 30% सूत तैयार किया जाता है।
यहाँ कुल 119 मिलें हैं जिनमें लगभग 3 लाख श्रमिक कार्य करते हैं। इस राज्य का सबसे बड़ा केंद्र ‘मुंबई’ है जिसे ‘कपास का विराट नगर’ कहा जाता है। गुजरात इस क्षेत्र में दूसरा प्रमुख राज्य है जहाँ इस उद्योग की 118 मिलें स्थापित हैं, अकेले अहमदाबाद में 67 मिलें सूती वस्त्रों का उत्पादन करती हैं जो कि अहमदाबाद को गुजरात का सबसे बड़ा और मुंबई के बाद भारत का दूसरा प्रमुख सूती वस्त्र उत्पादक केंद्र बनाती हैं। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल के कोलकाता, तमिलनाडु के कोयम्बटूर, आंध्र प्रदेश के हैदराबाद, केरल तथा कर्नाटक राज्यों में भी इस उद्योग का विकास हुआ है। देश के अन्य तटीय राज्यों की अपेक्षा महाराष्ट्र और गुजरात में इस उद्योग का अधिक विकास हुआ है। जिसके प्रमुख कारणों है:-
- दोनों राज्यों में आर्द्र जलवायु पाई जाती है जो कि वस्त्र उद्योग के लिये आदर्श है।
- मुंबई एक महत्त्वपूर्ण बंदरगाह है जिससे भारी मशीनें तथा लंबे रेशे वाला कपास आयात करने में कठिनाई नहीं होती, वहीं अहमदाबाद भारत के सभी भागों से यातायात के साधनों द्वारा जुड़ा हुआ है, जिससे यहाँ का माल आसानी से अन्य क्षेत्रों में बेचा जा सकता है।
- सस्ती जलविद्युत की उपलब्धता के साथ ही सस्ते और कुशल श्रमिक भी आसानी से मिल जाते हैं।
- जहाँ मुंबई के सूती वस्त्रों की भारत तथा विदेशों में बड़ी मांग है वहीं, अहमदाबाद के कारखानों में निर्मित लट्ठा और धोती जैसे सूती वस्त्रों की भारत तथा अन्य निर्धन देशों में विशेष मांग रहती है।[६]
- यद्यपि उपरोक्त सभी विशेषताएँ देश के अन्य तटवर्ती राज्यों में भी पाई जाती हैं लेकिन एक विशेषता जो इन दोनों राज्यों में इस उद्योग के अधिक विकसित होने का सर्वाधिक प्रमुख कारण है, वह है- कच्चे माल की सुगमता से प्राप्ति। वस्तुतः दोनों राज्यों की पृष्ठभूमि में काली मिट्टी पाई जाती है जो कि कपास उत्पादन के लिये आदर्श एवं आवश्यक तत्त्व है।
उपर्युक्त विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि महाराष्ट्र एवं गुजरात सूती वस्त्र उत्पादन के क्षेत्र में भारत में अग्रणी राज्य है।
रूस
[सम्पादन]सूती वस्त्र उद्योग रूस में प्राचीन काल से ही चला आ रहा है। यहां का सर्वप्रथम आधुनिक उद्योग पोलैंड के अधिकृत क्षेत्र में स्थापित हुआ था परंतु बाद में मास्को-इवानोवा तथा लेनिनग्राड में इनका विस्तार हुआ। अठारहवीं शताब्दी के मध्य में इंग्लैंड से आयातित सूत पर आधारित बुनाई के कारखाने का विकास हुआ और 1793 में सूट कातने का पहला कारखाना शस्लबर्ग नामक स्थान पर स्थापित किया गया। इसके पश्चात यह उद्योग इस देश के अन्य भागों में भी फैल गया। 1917 के सोवियत क्रांति से पहले सूती वस्त्र उद्योग 85% मध्य औद्योगिक प्रदेश, 8% लेनिनग्राड क्षेत्र तथा लगभग 5% उत्तरी काॅकेशस क्षेत्र में स्थित था। अब यह उद्योग यूराल पर्वत की पूर्वी ढालों तक भी फैल गया है परंतु अब भी 75% से अधिक केंद्र ढाल यूराल पर्वत के पश्चिम में स्थित हैं जहां 83% सूत तथा सूती वस्त्र तैयार होते हैं। इस समय रूस विश्व का लगभग 9% कपड़ा तथा सूत तैयार करके तीसरे स्थान पर है। रूस में इस उद्योग के विकास का निम्नलिखत कारण है:-
- यह देश कोयले का भी बहुत बड़ा उत्पादक है जिससे यहां चालक शक्ति प्रचुर मात्रा में मिलती है।इसके अतिरिक्त बड़ी मात्रा में जल विद्युत भी प्रयोग में लाया जाता है।
- दक्ष श्रमिक पर्याप्त संख्या में मिल जाते हैं। सामूहिक प्रणाली से कृषि कार्य से बचे हुए श्रमिक उद्योगों में काम करते हैं।
- इस उद्योग में प्रयोग होने वाली मशीनें मास्को, तुला आदि क्षेत्रों में बनती है जिससे उनका आयात नहीं करना पड़ता।
- अनेक रेल मार्गों का निर्माण किया गया है जिससे परिवहन की सुविधा हो गई है। बहुत से रेल मार्ग का विद्युतीकरण करके उनकी गति बढ़ाई गई है।
- यूरोपीय देश में जनसंख्या अधिक तथा लोगों का जीवन-स्तर ऊंचा है, अतः वहां पर कपड़े की बढ़ी मांग रहती हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी का बड़ा विकास हुआ है इसका अनुकूल प्रभाव सूती वस्त्र उद्योग पर भी पड़ा है।
- विघटन से पहले सोवियत संघ विश्व में कपास का तीसरा बड़ा उत्पादक था। परंतु बहुत से कपास उत्पादक क्षेत्र उज्बेकिस्तान में चले गए हैं जो इस समय विश्व का चौथा बड़ा कपास उत्पादक देश बन गया है। अतः अब रूस को बहुत ही कपास आयात करनी पड़ती है।
उपर्युक्त कारणों से रूस के कई क्षेत्रों में वस्त्र उद्योग स्थापित हो गया है जिसमें से कुछ महत्वपूर्ण उद्योग क्षेत्र निम्नलिखित हैं:-
मास्को-इवानोवो प्रदेश
[सम्पादन]इस प्रदेश में 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों से हूं सूती वस्त्र उद्योग विकसित हुआ। अब यह रूस का सबसे अधिक महत्वपूर्ण उत्पादक क्षेत्र बन गया है। यहां के प्रमुख केंद्र मास्को तथा इवानोवो हैं जिनके नाम से इस क्षेत्र का नाम पड़ा है। मास्को क्षेत्र में मास्को के अतिरिक्त नोगिन्स्क, शेरपुरवोव, ग्लुखोवो, येगोरयेवस्क, पावलावोस्की-पोसाद आदि हैं। इवानोंवो को तत्कालीन सोवियत संघ का मैनचेस्टर कहते हैं। इवानोवा के चारों ओर सूती वस्त्र उद्योग के नगरों का घेरा सा बन गया है जिसमें यारोस्लावल, किनेशमा, शया, कोवरोव, ओरे-खोवो-जुयेवो आदि मुख्य केंद्र है।
सेंट पीटर्सबर्ग क्षेत्र
[सम्पादन]यहां 19वीं शताब्दी से सूती वस्त्र उद्योग चला रहा है। अब इसका काफी विस्तार हो चुका है इसके मुख्य केंद्र लेनिनग्राड, नार्वा तथा तल्लीन है।
कालिनिन क्षेत्र
[सम्पादन]यह मास्को क्षेत्र के पश्चिम में स्थित है। इसके मुख्य केंद्र कालिनिन,वोलिचेक,विशनीय, आदि हैं।
बोल्गा बेसिन
[सम्पादन]वोल्गा नदी की घाटी में चेवोकसारी एवं कणीशिन तथा वोल्गा की एक सहायक नदी पर ताम्बोब में बड़े पैमाने पर सूती वस्त्र का उत्पादन होता है।
यूराल क्षेत्र
[सम्पादन]यूराल क्षेत्र के पूर्व में स्थित चेल्याबिन्स्क मुख्य सूती वस्त्र निर्माण केंद्र है।
साइबेरिया
[सम्पादन]साइबेरिया में मुख्य रेलमार्ग के सहारे-सहारे चेलियाबिंस्क से पूर्व की ओर सूती वस्त्र उद्योग विकसित हुआ है। क्षेत्र का मुख्य केंद्र ओमस्क,टोमस्क, अल्मा-आता,कुस्तानोव,कान्स्क,बरनोल, नोवोसिविस्क, ब्रियंस्क,केमेरोव आदि हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका
[सम्पादन]संयुक्त राज्य अमेरिका में इस उद्योग का आरंभ न्यू इंग्लैंड राज्यों के रोड द्वीप स्थित पौटुकेट नामक स्थान पर सन् 1790 में हुआ।
शीघ्र ही यहां पर अन्य केंद्रों पर भी यह उद्योग चालू हो गया और यह क्षेत्र सूत तथा सूती वस्त्रों के उत्पादन का महत्वपूर्ण क्षेत्र बन गया।
बाद में मध्य अटलांटिक क्षेत्र तथा दक्षिणी क्षेत्र में भी यह उद्योग पनप गया और यह देश ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर विश्व का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया। परंतु बाद में इसके उत्पादन में गिरावट आ गई और विश्व स्तर पर इसका महत्व कम हो गया। सन् 1965 में इस देश में 844.7 करोड़ मीटर कपड़ा तैयार किया था जो घटकर सन् 1974 में केवल 431.0 करोड़ मीटर ही रह गया और भारत, रूस तथा चीनी इससे आगे निकल गए। इस प्रकार सूती वस्त्र उद्योग की दृष्टि से संयुक्त राज्य अमेरिका का चीन, भारत, तथा रूस के पश्चात चौथा स्थान है और यह देश विश्व का 6.64% सूती वस्त्र तथा 8.2% सूत तैयार करता है। परंतु अब भी इस देश का सूती वस्त्र उद्योग की दृष्टि से महत्वपूर्ण स्थान है और जीवन स्तर ऊंचा होने के कारण यहां पर वस्त्रों की मांग रहती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका का वर्तमान वस्त्र उद्योग 3 छात्रों में वितरित है जिनका विवरण इस प्रकार है:-
न्यू इंग्लैंड राज्य
[सम्पादन]यह संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित है।इस देश की सबसे पहले मिल इसी क्षेत्र में स्थिति रोडे द्विप पर पैटुकेट नामक स्थान पर सन् 1790 में स्थापित हुई थी। सिंगल है इस क्षेत्र के अन्य स्थानों पर यह उद्योग स्थापित हो गया और यह क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा उत्पादक बन गया। इसका विकास मुख्यत: रोड़े द्विप, मैसाचुसेट्स,केनीकेट तथा न्यू हैम्पशायर राज्यों में हुआ। इन राज्यों के मुख्य केंद्र बोस्टन, प्रोविडेंस,वूनसौकेट,न्यूवैडफोर्ड,मानचेस्टर,फाल रिवर,लाॅवेल, लाॅरेन्स,वीवरले,पिचबर्ग,हैलीओक,नार्थ एडम्स,टाउनटन आदि है। सन् 1920 तक न्यू इंग्लैंड राज्यों का सूती वस्त्र उद्योग की दृष्टि से अधिक महत्व रहा, परंतु इसके पश्चात इस क्षेत्र का महत्व घटने लगा क्योंकि यहां पर उत्पादन में कमी आ गई और अन्य क्षेत्रों का उत्पादन बढ़ गया। सन् 1920 में यहां पर संयुक्त राज्य अमेरिका का 52% उद्योग केंद्रित था जो अब घटकर केवल 15% रह गया है। क्षेत्र में वस्त्र उद्योग के ह्रास का निम्नलिखित कारण थे:-
- अत्यधिक नगरीकरण के कारण श्रमिकों का अधिक वेतन तथा अधिक स्थानीय कर।
- उद्योग की अत्यधिक सघनता के कारण भूमिका का किराया अधिक बढ़ गया।
- पुरानी मशीनों तथा मिलो का रूढ़िवादी प्रारूप।
- स्थानीय रूप से कपास उपलब्ध ना होना।
- जनसंख्या तथा बाजार का उत्तर-पूर्व से मध्य-पश्चिम की ओर स्थानांतरण।
- स्थानीय रूप से धातु, मशीनरी, रसायन तथा छपाई उद्योग को अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया गया।
मध्य अटलांटिक राज्य
[सम्पादन]यह क्षेत्र पेंसिल्वेनिया के पूर्वी भाग, न्यूयॉर्क, न्यू जर्सी, फिलाडेल्फिया, तथा मैरीलैंड राज्यों में फैला हुआ है। यहां पर प्रचूर-श्रम, जल-विद्युत, रेल परिवहन, मशीनों तथा निकटवर्ती बाजार की सुविधाएं उपलब्ध है। यहां पर फिलाडेल्फिया सबसे बड़ा केंद्र है। अन्य महत्वपूर्ण केंद्र विलमिंगटन, जर्मन टाउन,जर्सी सीटी,हेरिसबर्ग,पेटरसन,स्क्रेंटन, ट्रेंटन,विल्कीजबारे तथा बाल्टीमोर है। न्यूयॉर्क सिले-सिलाये हुए वस्त्रों का सबसे बड़ा केंद्र है।
दक्षिणी अप्लेशियन राज्य
[सम्पादन]इस समय यह संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे बड़ा सूती वस्त्र उत्पादक प्रदेश है और उत्तरी कैरोलिना, दक्षिणी कैरोलिना, जॉर्जिया तथा टेनिसी राज्यों में विस्तृत है। सूती उद्योग का विकास सन् 1880 के बाद शुरू हुआ। उसके बाद से या निरंतर उन्नति करता गया। यहां पर प्रमुख केंद्र चारलोट्टे (उत्तर कैरोलिना), कोलंबिया (दक्षिण कैरोलिना), ऑगस्टा तथा एटलाण्टा (जार्जिया) है। सबसे अधिक संकेंद्रण प्रपात रेखा के निकट हुआ है जहां पर ग्रोन्सबरो, रैले,स्पाटर्नबर्ग, ग्रीनविले,मेकन, कोलंबस तथा मोंटगोमरी प्रमुख है। टेनेसी घाटी में नॉक्सविले तथा चट्तानृगा मुख्य उत्पादक केंद्र है। इस समय इस प्रदेश में संयुक्त राज्य अमेरिका का लगभग तीन चौथाई सूती वस्त्र उद्योग केंद्रित है। इस क्षेत्र के इतने अधिक विकसित होने के निम्नलिखित कारण है:-
- यह क्षेत्र संयुक्त राज्य अमेरिका के मुख्य कपास में मेखला के निकट है जिससे यहां कपास आसानी से मिल जाती है।
- दक्षिणी अप्लेशियन कोयला क्षेत्र से पर्याप्त कोयला मिल जाता है।
- अप्लेशियन पर्वत से निकलने वाली बहुत सी नदियां तीव्र गति से बहती है और पर्वत के पार्श्व पर कई जलप्रपात बनाती है जिसे प्रपात-रेखा कहते हैं। इस प्रपात-रेखा पर बहुत से जल-विद्युत उत्पादक केंद्रों की स्थापना की गई है जिससे इस उद्योग को सस्ती जल विद्युत उपलब्ध हो जाती है। टेनेसी में भी पर्याप्त जल विद्युत मिल जाता है।
- पिंडमाॅण्ड क्षेत्र में श्वेत तथा अश्वेत जातियों के लोगों द्वारा सस्ता श्रम प्रदान किया जाता है।
- यहां पर सूत काटने तथा कपड़े बुनने की मशीनों का निर्माण किया जाता है जिससे नई मिलो को लगान तथा पुरानी मिलों की मशीनों को बदलने में कठिनाई नहीं होती।
- दक्षिणी राज्यों की बढ़ती हुई जनसंख्या से स्थानीय बाजार की सुविधा प्राप्त हैं। यहां का माल देश के अन्य भागों में भी खूब बिकते हैं।
- यहां पर भूमि अपेक्षाकृत सस्ती है और स्थानीय कर भी कम है।
जापान
[सम्पादन]जापान में प्रथम सूती वस्त्र उद्योग की मिल सन् 1867 में स्थापित की गई थी, अर्थात जापान में सूती वस्त्र उद्योग का प्रारंभ भारत के बाद हुआ, परंतु यहां पर विकास की गति तीव्र थी।
सन् 1900 तक श्रमिक संख्या की दृष्टि से यह जापान का प्रथम उद्योग हो गया। प्रथम विश्व युद्ध काल (1914-18) मैं इस उद्योग ने बड़ी तीव्र गति से उन्नति की और जापानी वस्त्र, चीन, भारत, तथा अफ्रीका के बाजारों तक पहुंच गए। सन् 1938 तक जापान विश्व में सूती वस्त्रों का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया। द्वितीय विश्व युद्ध(1939-45) में जापान पर अमेरिका द्वारा बम गिराए जाने से जापान को भारी क्षति पहुंची और इसके 80% सूत काटने वाले कारखाने नष्ट हो गए। सन् 1946 में जापान के पास केवल 22 लाख तकुए रह गए थे। परंतु युद्ध के बाद जापान ने बड़ी तीव्र गति से इस उद्योग को नव-निर्माण किया और तकुओं की संख्या बढ़कर सन् 1952 में 69 लाख तथा 1967 में 126 लाख हो गई। बहुत से कारखानों में नई मशीनें लगाई गई। सन् 1950 में जापान फिर विश्व का सबसे बड़ा निर्यातक बन गया और यह देश आज तक अपनी उस स्थिति को बनाए हुए हैं। आज जापान अपने कुल सूती वस्त्र उत्पादन का 35% भाग निर्यात कर देता है। इस समय जापान विश्व का लगभग 3.5% कपड़ा तथा 3.7% सूत पैदा करके विश्व में पांचवें स्थान पर है।
जापान में सूती वस्त्र उद्योग के विकास के कारण:-
- भारत, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका आदि देशों से कपास का आयात किया जाता है।
- जापान में कोयले की कमी को जल विद्युत के प्रयोग से पूरा किया जाता है। जापान की पर्वतीय भूमि पर बहने वाली छोटी-छोटी नदियां स्थानों पर जलप्रपात बनाती है जिनसे जल विद्युत पैदा की जाती है।
- जापान द्विपों का देश हैं तथा चारों ओर से समुद्र द्वारा घिरा हुआ है। इसलिए इसके वायुमंडल में पर्याप्त आद्रता रहती है जो सूती वस्त्र उद्योग के लिए अनिवार्य है।
- जापान के तट पर कई बंदरगाह है जिससे कच्ची सामग्री के आया तथा निर्मित कपड़े के निर्यात में सुविधा रहती है। अधिकांश कारखाने भी बंदरगाहों में खोले गए हैं।
- बहुत बड़ी संख्या में सस्ता तथा कुशल श्रम मिल जाता है। कृषि क्षेत्रों से लड़कियां मिलती थी जो अपने परिवारों को कार्य से छुड़ाने के लिए सस्ते परिश्रमिक पर दिन में 15 घंटे काम करती थी।
- अपनी उच्च तकनीकी दक्षता के सहारे जापान ने पूर्वी, दक्षिणी तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के लिए सस्ते सूती वस्त्र तैयार करने में विशिष्टता प्राप्त कर ली थी। जापान के लोग भारत के छोटे रेशे वाले कपास के साथ मिस्र की बढ़िया कपास के मिश्रण से अच्छे वस्तुओं का निर्माण करते हैं।
- विदेशी बाजार के अतिरिक्त जापान में घरेलू मांग भी अधिक है।
अब जापानी वस्त्र केवल एशिया व अफ्रीका के देशों को ही नहीं बल्कि यूरोप, चीनी अमेरिका तथा आस्ट्रेलिया को भी निर्यात होते हैं।
जापान का सूती वस्त्र उद्योग निम्नलिखित क्षेत्रों में वितरित है:-
किनकी प्रदेश
[सम्पादन]इसमें ओसाका सबसे महत्वपूर्ण केंद्र है और जापान का मैनचेस्टर भी कहलाता है। ओसाका के आसपास विस्तृत मैदानी भाग है जो उद्योग के विकास के अनुकूल है। ओसाका का एक प्रमुख बंदरगाह भी हैं जिससे आयात-निर्यात में सुविधा होती है।
क्वांतो प्रदेश
[सम्पादन]इसमें टोकियो एवं याकोहामा मुख्य केंद्र है।
नागोया प्रदेश
[सम्पादन]इसमें नागोया में तथा इसके आसपास कई केंद्र है।
उपर्युक्त क्षेत्रों के अतिरिक्त देश के आंतरिक भागों में छोटे-छोटे कारखानों जहां-तहां बिखरे हुए हैं। छोटे आकार के होते हुए भी यह कारखाने आधुनिक यंत्रों का प्रयोग करते हैं और कम लागत पर उच्च कोटि के वस्त्रों का निर्माण करते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारत, हांगकांग, चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका तथा ब्रिटेन की प्रतिस्पर्धा का मुकाबला करने के लिए जापान समय-समय पर अपने उत्पादों में ग्राहकों की रूचि के अनुसार विविधता तथा नवीनता लाता रहता है।
यूरोप
[सम्पादन]समस्त यूरोपीय देशों में कपास का उत्पादन नगण्य है, फिर में सूती वस्त्र उद्योग विस्तृत क्षेत्र पर फैला हुआ है।यह उद्योग ब्रिटेन के लंकाशायर क्षेत्र से लेकर फ्रांस, बेल्जियम, नीदरलैंड, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, उत्तरी इटली तथा चेकोस्लोवाकिया से होता हुआ पोलैंड तथा जर्मनी तक फैला हुआ है। प्रमुख उत्पादक जर्मनी, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन, स्पेन, तथा पोलैंड है।
यूरोप में सूती वस्त्र उद्योग के विकसित होने के निम्नलिखित कारण है:-
- कपास अन्य देशों से आयात की जाती है। विश्व की कुल कपास का 20% से अधिक उपभोग यूरोप में होता है। विश्व के कुल कपास निर्यात का 70% यूरोपीय देशों द्वारा आयात किया जाता है।
- यूरोप में कोयले की अपार भंडार हैं जिससे चालक शक्ति मिलती है।
- इस उद्योग में प्रयोग होने वाली मशीनें भी यहां पर बनती है।
- रेलों, सड़कों तथा जलमार्गों का जाल बिछा हुआ है जिससे परिवहन की सुविधा होती है।
- अच्छे बंदरगाह काफी संख्या में है जिससे कपास के आयात तथा निर्मित वस्तुओं के निर्यात में कोई कठिनाई नहीं होती है।
- घरेलू बाजार के अतिरिक्त विदेशी बाजार में बहुत सा यूरोपिय कपड़ा बिकता है।
- उच्च तकनीकी स्तर के कारण उत्पादन की मात्रा तथा उसकी गुणवत्ता उच्च स्तर की होती है।
ग्रेट ब्रिटेन
[सम्पादन]ब्रिटेन का सूती वस्त्र उद्योग'औद्योगिक उत्थान और पतन'की कहानी है। विश्व में औद्योगिक क्रांति सबसे पहले ब्रिटेन में आई और यहीं से सूती वस्त्र उद्योग का भी सूत्रपात हुआ। 18 वीं तथा 19 में शताब्दी के लगभग डेढ़ सौ वर्षों तक ब्रिटेन विश्व में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सूती वस्त्रों का उत्पादक तथा निर्यातक रहा। प्रथम विश्व युद्ध से पहले ब्रिटेन का सूती वस्त्र उद्योग अपने चरम सीमा पर था उसके पश्चात इस का पतन शुरू हो गया।1913 में यहां विश्व के लगभग 40% सूत उत्पादन की क्षमता थी और 30% शक्ति चालक करघे थें। उस वर्ष 8 अरब गज सूती कपड़ा तैयार हुआ जो 1970 की अपेक्षा 13 गुना अधिक था। ऐतिहासिक क्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका, बेल्जियम, फ्रांस, जर्मनी, आदि यूरोपीय देशों तथा जापान, भारत, रूस, चीन आदि अन्य देशों में उत्पादन और निर्यात की वृद्धि होने के कारण तथा ब्रिटेन का अपना उत्पादन कम होने के कारण ब्रिटेन का सापेक्षिक महत्व बहुत कम हो गया। अब ब्रिटेन विश्व का केबल 0.56% कपड़ा तथा 0.8% सूत तैयार करता है जो लगभग नगण्य हैं।
ब्रिटेन का सूती वस्त्र उद्योग मुख्यतः निर्यात पर ही आश्रित था। दिन में या उद्योग लंका शायर तथा ग्लास्गों क्षेत्रों में विकसित हुआ परंतु अधिक विकास लंका शायर में ही हुआ। इसके कई कारण थे जिनमें आद्र जलवायु, कुशल श्रमिक, पर्याप्त कोयला भंडार, जलापूर्ति आदि प्रमुख थे। लिवरपूल बंदरगाह द्वारा संयुक्त राज्य अमेरिका से कपास का आयात करना आसान था। मैनचेस्टर शिप कैनाल के बनने से स्थिति और भी अनुकूल हो गई। इस प्रकार मैनचेस्टर तथा लिवरपूल ने मिलकर इस देश के कपड़े उद्योग को अभूतपूर्व उन्नति दिलाई। मैनचेस्टर के उत्तर तथा पूर्व में लगभग 20 किलोमीटर लंबी अर्थ चंद्राकर पट्टी में स्थित बोल्टन, बरी, रोकडेल, ओल्डम, स्टॉकपोर्ट आदि नगर है जो कताई का काम करते थे। दूसरी ओर ब्लेकबर्न, बर्नले, प्रेस्टन, आदि नगर बुनाई का काम करते थे। अकेले लंका शायर क्षेत्र में ही ब्रिटेन का 90% कपड़ा तथा सूत तैयार होता था। भारत सहित ब्रिटेन के बहुत से उपनिवेशक इसके बहुत अच्छे ग्राहक थे। अब अधिकांश देश स्वतंत्र हो गए हैं और ब्रिटेन का माल नहीं खरीदते। इसके अतिरिक्त ब्रिटेन को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत, चीन, जापान, संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस आदि देशों की प्रतिस्पर्धा का सामना भी करना पड़ता है।
फ्रांस
[सम्पादन]इस समय फ्रांस यूरोप का महत्वपूर्ण सूती वस्त्रों का उत्पादन करने वाला देश है और विश्व का लगभग 1.5% सूती कपड़ा तथा 2.3% सूत तैयार करता है। यहां पर सूती वस्त्र उद्योग के तीन क्षेत्र हैं:-
वासजेज क्षेत्र
[सम्पादन]इसका महत्व फ्रांस में सबसे अधिक है। यहां पर बेलफोर्ट, कोलमार, मलहाउस, एपीनाल, तथा नेन्सी प्रमुख केंद्र हैं।
नामर्मण्डी क्षेत्र
[सम्पादन]फ्रांस में सर्वप्रथम सूती वस्त्र उद्योग इसी क्षेत्र के टोंवा नामक जिले में शुरू हुआ था। रोएं नगर इस क्षेत्र का प्रधान केंद्र है।
जर्मनी
[सम्पादन]सूती वस्त्र उत्पादन में जर्मनी का महत्वपूर्ण स्थान है। यह घटिया रुई और उन मिलाकर विशेष किस्म का कपड़ा तैयार किया जाता है। इस उद्योग के मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं:-
रूर क्षेत्र
[सम्पादन]जर्मनी के उत्तरी पश्चिमी भाग में स्थित है जो सूती वस्त्र उद्योग का सबसे प्रसिद्ध क्षेत्र है। इस क्षेत्र को राइन नदी और नहरों द्वारा सस्ते यातायात की सुविधा प्राप्त हो जाती है। ब्रोमीन बंदरगाह द्वारा अमेरिकी कपास प्राप्त हो जाती है। औद्योगिक क्षेत्र होने से यहां सस्ते श्रमिक मिल जाते हैं और जनसंख्या की सघनता से स्थानीय मांग भी बहुत है। यहां के मुख्य केंद्र ब्रोमीन, एल्बरफील्ड, मदेन, ग्लोडबाक, रेन ऑडी हैं।
सेक्सोनी क्षेत्र
[सम्पादन]सूती वस्त्र उद्योग के विकसित होने का कारण यहां का प्राचीन ऊनी वस्त्र उद्योग है जिससे यहां कुशल कारीगरों की कमी नहीं है। यहां का कोयला जिकाऊड्रेस्डन प्रदेश से मिलता है। लीपिजिंग,ड्रेस्डन,राहसन,चिमनिज, म्यूनिख और ज्विचवान यहां के प्रमुख केंद्र हैं।
दक्षिणी पश्चिमी जर्मनी क्षेत्र
[सम्पादन]यहा के मुख्य सूती वस्त्र उत्पादक केंद्र स्टटगार्ड,आग्सबर्ग और मुलहाउस है। यहां कोयला और कपास आयात करना पड़ता है। नेकार औद्योगिक क्षेत्र में यहां के कपड़े की खपत बहुत है यहीं से सस्ते श्रमिक भी मिलते हैं।
इटली
[सम्पादन]इटली में सूती वस्त्र उद्योग पो नदी बेसिन तथा आल्पस की घाटियों में स्थित है इटली में कोयले के अभाव के कारण जल-विद्युत से उद्योग चलाया जाता है। मुख्य केंद्र मिलान, कानो, बरगामो, टूयूरीन, जेनोओ,वारेसे,ब्रस्सिया,उदाइन,पाविआ,मन्तुआ आदि है।
संबंधित प्रश्न
[सम्पादन]- देश के अन्य तटीय राज्यों की अपेक्षा महाराष्ट्र में सूती वस्त्रोद्योग के अधिक विकसित होने के कारणों का परीक्षण करना है।
- सूती वस्त्र उद्योगों को प्रभावित करने वाले कारक की व्याख्या करें।
- विश्व में सूती वस्त्रों की सबसे अधिक उत्पादन करने वाले देशों के नाम बताएं।
- कपास के कितने प्रकार होते हैं चर्चा करें।
- वर्तमान समय में सूती वस्त्र उद्योग के लिए किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है ?
- विश्व में सूती वस्त्र उद्योग के स्थानीयकरण व वितरण के कारकों का वर्णन कीजिए।
सन्दर्भ
[सम्पादन]- ↑ D R Khullar. Geography Textbook-Hindi. New Saraswati House India Pvt Ltd. आइएसबीएन 978-93-5041-244-2.
- ↑ Sabyasachi Bhattacharya (1 September 2008). Adhunik Bharat Ka Aarthik Itihas. Rajkamal Prakashan. पृप. 130–. आइएसबीएन 978-81-267-0080-6.
- ↑ Cheng Leong Goh; Gillian Clare Morgan (1982). Human and Economic Geography. Oxford University Press. आइएसबीएन 978-0-19-582816-0.
- ↑ John Singleton (1997). The World Textile Industry. Psychology Press. आइएसबीएन 978-0-415-10767-9.
- ↑ India Cotton and Textile Industries: Reforming to Compete. Allied Publishers. 1999. आइएसबीएन 978-0-8213-4604-4.
- ↑ H. M. Saxena (2013). Economic Geography. Rawat Publications. आइएसबीएन 978-81-316-0556-1.