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भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)/अर्द्ध-सममात्रिक छंद

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भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)
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बरवै

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बरवै छंद - यह अर्द्ध सममात्रिक छंद है। इसके विषम अर्थात् पहले और तीसरे चरणों में बारह (12) मात्राएँ तथा दूसरे - चौथे चरणों में सात (7) मात्राएँ होती । समचरण अर्थात् दूसरे - चौथे के अंत में जगण मधुर होता है , पर तगण का प्रयोग भी हो सकता है । इस प्रकार बरवै में उन्नीस ( 19 ) मात्राएँ होती है ।

परिभाषा - जिस छंद के विषम चरणों ( पहले और तीसरे ) में बारह ( 12 ) मात्राएँ तथा सम चरणों ( दूसरे - चौथे ) में सात ( 7 ) मात्राएँ होती है तथा समचरण के अन्त में जगण ( ।ऽ। ) मधुर होता है , पर तगण भी आ सकता है । इसमें 19 मात्राएं होती हैं । ऐसे छंद को बरवै कहते है ।

उदाहरण

घन गर्जन सुन नाचे , मत्त मयूर ।
प्रियतम तुम हो मुझसे , कितनी दूर ।

दोहा

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दोहाछंद - यह छंद अर्द्ध सम मात्रिक - छंद है । इसके सम चरणों अर्थात् दूसरे और चौथे चरणों में ग्यारह - ग्यारह ( 11-11 ) मात्राएँ होती है तो विषम चरणों में अर्थात पहले व तीसरे चरण में तेरह - तेरह ( 13-13 ) मात्राएँ होती है । इस तरह 13+11,13 +11 मात्राओं के क्रम से इसके चार चरणों का संयोजन होता है। दोहा के विषम चरणों के प्रारंभ में जगण ( ।ऽ।) नहीं होना चाहिए और अंत में ( ऽ। ) गुरु - लघु मात्रा के साथ सम चरणों को समाप्त होना चाहिए। अंत में ( ऽ। ) गुरु - लघु का क्रम आवश्यक होता है।

परिभाषा - जिस छंद के विषम ( पहले - तीसरे ) चरणों में 13 मात्राएँ तथा सम ( दूसरे - चौथे ) चरणों में 11 मात्राएँ होती है और विषम चरणों के आरंभ में जगण नहीं होता एवं अन्त में गुरु - लघु का क्रम होता है उसे दोहा छंद कहते हैं ।

उदाहरण

करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निसान॥

सोरठा

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सोरठा छंद को दोहा छंद का उल्टा माना जाता है , लेकिन यह भी नहीं समझना चाहिए कि सभी दोहों को उलटने से सोरठा बन जाएगा । वस्तुत : सोरठा एक स्वतंत्र छंद है । उसका अपना विधान है , अपनी शैली है । किसी भी दोहे को उलटने से अर्थाभिव्यक्ति में स्वाभाविकता नहीं रह पाती । सोरठा में अर्थाभिव्यक्ति के स्वाभाविक क्रम से ही पद - रचना की जाती है ।

सोरठा के समचरणों अर्थात दूसरे - चौथे में 13 मात्राएं तथा विषम चरणों अर्थात् पहले - तीसरे चरणों में 11 मात्राएँ होती है । इसमें तुक पहले और तीसरे चरण के अंत में मिलती है ।

परिभाषा - जिस छंद के सम ( दूसरे - चौथे ) चरणों में 13 मात्राएँ और विषम , पहले - तीसरे चरणों में 11 मात्राएँ हाती हैं । पहले और तीसरे चरण के अंत में तुक मिलती है , उसे सोरठा छंद कहते हैं ,

उदाहरण -

सुनत सुमंगल बैन , मन प्रमोद तन पुलक भर ।
सरद सरोरुह नैन , तुलसी भरे स्नेह जल ॥