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भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)/सममात्रिक छंद

विकिपुस्तक से
भारतीय काव्यशास्त्र (दिवि)
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उल्लाला

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परिभाषा - यह एक सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में 15 व 13 की यति पर कुल 28 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण -

यों किधर जा रहे हैं बिखर,
कुछ बनता इससे कही।
संगठित एटमी रूप धर,
शक्ति पूर्ण जीतो महि।।

चौपाई

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चौपाई छंद - परिभाषा - चौपाई एक सम मात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में सोलह (16) मात्राएँ होती है तथा अंत में जगण ( ।ऽ।) या तगण (ऽऽ। ) न रखने का विधान है । चौपाई के अंत में ( ऽ। ) गुरु लघु नहीं होने चाहिए । इस छंद के दो चरणों को मिलाकर एक अर्धाली बनती है।

जिस सममात्रिक छंद के प्रत्येक चरण में सोलह मात्राएँ होती है तथा अन्त में जगण या तगण तथा गुरु - लघु नहीं होते , उसे चौपाई छंद कहते हैं ।

उदाहरण

रहहु करहु सब कर परितोषू ।
नतरु तात ! होइहि बड़ दोषू ।
जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी।
सो नृप अवसि नरक अधिकारी।

रोला

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रोला छंद - परिभाषा - रोला एक सममात्रिक छंद है । इसमें चार चरण होते हैं । इसके प्रत्येक चरण में चौबीस ( 24 ) मात्राएँ होती है और ग्यारह तथा तेरह मात्राओं के पश्चात् यति अर्थात विराम होता हैं।

जिस छंद के प्रत्येक चरण में चौबीस मात्राएँ होती है और ग्यारह तथा तेरह मात्राओं के बाद यति ( विराम ) होता है , उसे रोला छंद कहते हैं ।

उदाहरण

नव उज्ज्वल जलधार , हार हीरक - सी सोहति ,
बिच विच छहरति बूंद , मध्य मुक्ता - मनि पोहति ।
लोन लहर लहि पवन , एक पै इक इमि आवत ;
जिमि नर गन मन विविध , मनोरथ करत मिटावत ।।

हरिगीतिका

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हरिगीतिका छंद - परिभाषा - हरिगीतिका छंद भी सममात्रिक छंद है। इसमें चार चरण है और प्रत्येक चरण में अट्ठाईस ( 28 ) मात्राएँ होती हैं। 16 और 12 मात्राओं पर यति होती है तथा अन्त में एक लघु और एक गुरु होता है।

उदाहरण

 अधिकार खोकर बैठे रहना यह महा दुष्कर्म है
न्यायार्थ अपने बंधु को भी दंड देना धर्म है।
इस तत्व पर ही कौरवों का पांडवों से रण हुआ।।
जो भव्य भारतवर्ष के कल्पान्त का कारण हुआ।