भारतीय साहित्य/नामदेव

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भारतीय साहित्य
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: भारतीय आर्यभाषा के मध्ययुग में जो अनेक प्रादेशिक भाषाएँ विकसित हुई उनका सामान्य नाम प्राकृत है और उन भाषाओं

संत काव्य- नामदेव

मेरा वही एक

(11)

मैं बउरी मेरा राम भतारु । रचि रचि ताकउ करउ सिंगारु ॥1॥
भले निंदउ, भले निंदउ, भले निंदउ लोग ।
तनु मनु राम पिआरे जोगु॥ रहाउ ॥
 वाद विवाद काहू सिउ न कीजै। रसना राम रसाइनु पीजै ॥2॥
अब जीअ जानि जैसी बनिआई। मिलउ गुपाल नीसानु बजाई ॥3॥
उसतति निंदा करै नरू कोई। नामे स्त्रीरंगु भेटल सोई॥4॥

एक मात्र स्वामी

(12)

वदहु किन होड़ माधउ मोसिउ ।
 ठाकुर ते जनु जनंते ठाकुरु, पेलु परिउ है तोसि ॥ रहाउ ॥
आपन देउ देहुरा आपन, आप लगावै पूजा।
 आपहि गावै आपही नाचै, आप बजावै तूरा।
 कहत नामदेउ तू मेरो ठाकुरु, जनु ऊरा तूं पूरा॥2॥

जलते तरंग तरंगते है जलु, कहन सुननकउ दूजा ॥ 1 ॥

उसका अंतर्यामित्व

(13)

ऐसो रामराइ अंतरजामी।
जैसे दरपन मांहि बदन परवानी ॥ रहाउ ॥
बसै घटाघट लीपन छीपे। बधान मुकता जात न दीसै॥1॥
 पानी माहि देषु मुषु जैसा। नामें को सुआमी बीठलु जैसा ॥2॥

प्रार्थना

(14)

लोभलहरि अति नीझर बाज़ै, काइआ डूबै केसवा ॥1॥
 संसारु समुदे तारि गोविंदे । तारिलै बाप बीठला ॥ रहाउ ॥
अनिल बेड़ा हउ पेवि न साकउ। तेरा पारु न पाइआ बीठुला ॥१॥
होहु दइआलु सति गुरु मेलि तू। मोकउ पारि उतारु केसवा ॥3॥
 नामा कहे हउ तरिभी न जानउ । मोकउ बाह देहि वाह दोह बीठुला ॥ 4 ॥