सामान्य अध्ययन २०१९/बौद्धिक संपदा अधिकार

विकिपुस्तक से
सामान्य अध्ययन २०१९
 ← विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी-भारत बौद्धिक संपदा अधिकार सीमावर्ती सुरक्षा → 

मिशन ‘रक्षा ज्ञान शक्ति’ को बढ़ावा देने के लिये हाल में बौद्धिक संपदा सुविधा सेल (Intellectual Property Facilitation Cell- IPFC), रक्षा मंत्रालय (Ministry of Defence- MoD) और राष्ट्रीय अनुसंधान विकास निगम (National Research Development Corporation- NRDC) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए। इस मिशन की शुरुआत 27 नवंबर, 2018 को दिल्ली में की गई थी। इसका उद्देश्य स्वदेशी रक्षा उद्योग में बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Right- IPR) की संस्कृति को बढ़ावा देना है। इस कार्यक्रम के समन्वय और कार्यान्वयन की ज़िम्मेदारी गुणता आश्वासन महानिदेशालय (Directorate General of Quality Assurance- DGQA) को दी गई थी।


उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग(DPIIT)द्वारा ड्राफ्ट कॉपीराइट (संशोधन नियम),2019 जारी

  • डिजिटल युग में टेक्‍नोलॉजी की प्रगति को देखते हुए कॉपीराइट अधिनियम का सहज और दोषरहित परिपालन सुनिश्चित करने और कानून को प्रासंगिक विधानों के समकक्ष लाने हेतू।
  • भारत में कॉपीराइट शासन,कॉपीराइट अधिनियम,1957 और कॉपीराइट नियम,2013 द्वारा शासित।
  • कॉपीराइट नियम,2013 को पिछली बार वर्ष 2016 में कॉपीराइट नियम,2016 के माध्यम से संशोधित किया गया था।
  • ड्राफ्ट नियमों में प्रस्ताव
  • कॉपीराइट बोर्ड(Copyright Board) को बदलने के लिये एक अपीलीय बोर्ड (Appellate Board) का गठन किया जाएगा।
  • बोर्ड के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति ट्रेड मार्क अधिनियम, 1999के प्रावधानों के अनुसार की जाएगी।
  • यह उन तरीकों को भी संशोधित करने का प्रस्ताव करता है जिसकी सहायता से कॉपीराइट सोसायटी अपनी टैरिफ योजनाओं को सुनिश्चित करती हैं।
  • कॉपीराइट सोसायटी एक कानूनी निकाय है जो वाणिज्यिक प्रबंधन के रचनात्मक लेखकों को उनके हितों की सुरक्षा का आश्वासन है।
  • ये सोसाइटी लाइसेंस जारी करती हैं और टैरिफ स्कीम के अनुसार रॉयल्टी जमा करती हैं।
  • DPIIT ने संशोधनों में प्रस्ताव दिया है कि कॉपीराइट सोसायटी टैरिफ का निर्धारण करते समय “क्रॉस-सेक्शनल टैरिफ तुलना’,आर्थिक अनुसंधान, लेखन के उपयोग की प्रकृति और विस्तार,उपयोग संबंधी अधिकारों का व्यावसायिक मूल्य एवं लाइसेंस धारियों को लाभ" आदि पहलुओं पर विचार कर सकती है।
  • प्रस्तावित संशोधनों अनुसार, कॉपीराइट सोसायटी द्वारा अपनी वेबसाइट पर प्रत्येक वित्तीय वर्ष के लिये ‘वार्षिक पारदर्शिता रिपोर्ट’ प्रकाशन अनिवार्य किया जाना चाहिये।-स्रोत- PIB


बौद्धिक संपदा अधिकार, निजी अधिकार हैं जो किसी देश की सीमा के भीतर मान्य होते हैं तथा औद्योगिक, वैज्ञानिक, साहित्य और कला के क्षेत्र में व्यक्ति (व्यक्तियों) अथवा कानूनी कंपनियों को उनकी रचनात्मकता अथवा नवप्रयोग के संरक्षण के लिये दिये जाते हैं।यह किसी भी प्रकार या आकार की अर्थव्यवस्थाओं में रोज़गार, नवाचार, सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।

  • मंत्रिमंडल ने नीस, वियना तथा लोकार्नो समझौतों जैसे वैश्विक ट्रेडमार्क प्रणाली से भारत के जुड़ने के प्रस्ताव को अनुमति दे दी।इससे जुड़ने के बाद बौद्धिक संपदा (IP) के संरक्षण के संबंध में भारत के प्रति विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ जाएगा।
  1. नीस समझौता (Nice Agreements) ट्रेडमार्क पंजीकरण वस्तुओं और सेवाओं के अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण से संबंधित
  2. वियना समझौता (Vienna Agreements) ट्रेडमार्कों के प्रतीकात्‍मक तत्त्वों के अंतर्राष्‍ट्रीय वर्गीकरण से संबंधित
  3. लोकार्नो समझौता (Locarno Agreements) औद्योगिक डिज़ाइनों के लिये अंतर्राष्‍ट्रीय वर्गीकरण से संबंधित


अमेरिका द्वारा जारी अपनी वार्षिक स्पेशल 301 रिपोर्टमें कुल 36 देशों को निगरानी सूची में डाला गया है।इस रिपोर्ट के अंतर्गत,अमेरिका अपने व्यापारिक भागीदारों का बौद्धिक संपदा की रक्षा और प्रवर्तन संबंधी ट्रैक रिकॉर्ड पर आकलन करता है। यूनाइटेड स्टेट्स ट्रेड रिप्रेज़ेंटेटिव (USTR) के अनुसार, भारत को बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPR) के कथित उल्लंघनों के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका (US) की ‘प्रायोरिटी वाच लिस्ट’ में बरकरार रखा गया है। ‘प्रायोरिटी वाच लिस्ट' में भारत के साथ ही चीन, इंडोनेशिया, रूस, सऊदी अरब और वेनेज़ुएला जैसे कुल 11 देशों को रखा गया है। तुर्की और पाकिस्तान जैसे कुल 25 देशों को अमेरिका ने ‘वाच लिस्ट’ में शामिल किया है।

भौगोलिक संकेतक(GI टैग)से संबंधित विषय[सम्पादन]

  • केरल के तिरूर वेटिला (Tirur Vettila) को भौगोलिक संकेत प्रदान किया गया।

यह एक प्रकार का पान (Betel Leaf) है,जिसे केरल के मलप्पुरम ज़िले के तिरूर और आस-पास के इलाकों में उगाया जाता है। इसके पत्तों में क्लोरोफिल और प्रोटीन की उच्च मात्रा पाई जाती है। इसमें अद्वितीय स्वाद एवं सुगंध जैसी कुछ विशेष जैव रासायनिक विशेषताएँ होती हैं। इसकी तीक्ष्णता का कारण इसमें उपस्थित यूजेनॉल (Eugenol) नामक प्रमुख तेल है। इसके पत्ते पौष्टिक होते हैं और इसमें एंटीकार्सिनोजेंस होता है जो कैंसर प्रतिरोधी दवाओं में प्रयोग किया जाता है। बेटेल वाइन (Betel Vine) में इम्युनोसप्रेसिव (Immunosuppressive) गतिविधि और रोगाणुरोधी जैसी विशेषताएँ भी पाई जाती हैं।

केरल कृषि विश्वविद्यालय की बौद्धिक संपदा अधिकार सेल को जीआई पंजीकरण की सुविधा प्रदान किये जाने के कारण भारत सरकार का राष्ट्रीय आईपी पुरस्कार, 2019 (National IP Award, 2019) मिला है।

केरल के अन्य जीआई उत्पाद: कैपड़ चावल (Kaipad Rice), पोक्कली चावल (Pokkali Rice), वायनाड जीराकसला चावल (Wayanad Jeerakasala Rice), वायनाड गंधकसाला चावल (Wayanad Gandhakasala Rice), वाझाकुलम अनन्नास (Vazhakulam Pineapple), मरयूर गुड़ (Marayoor Jaggery), सेंट्रल त्रावणकोर गुड़ (Central Travancore Jaggery) और चेंगालिकोडन नेन्ड्रान (Chengalikodan Nendran)।

  • तमिलनाडु के दो प्रसिद्ध उत्पादों- डिंडीगुल लॉक और कंडांगी साड़ी को चेन्नई में भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री द्वारा भौगोलिक संकेतक (GI) टैग दिया गया है।
कंडांगी साड़ी को इसके बड़े कॉन्ट्रास्ट बॉर्डर की विशेषता तथा डिंडीगुल लॉक को इसकी बेहतर गुणवत्ता और स्थायित्व के लिये दुनिया भर में जाना जाता है।

डिंडीगुल लॉक डिंडीगुल और उसके आस-पास की 3,125 से अधिक ताला निर्माण इकाइयाँ लगभग 5 किमी क्षेत्र तक सीमित हैं जो नागेलनगर, नल्लमपट्टी, कोडईपरैलपट्टी, कमलापट्टी और यज्ञप्पनपट्टी में केंद्रित हैं। इन क्षेत्रों में लोहे की प्रचुरता इस उद्योग की वृद्धि का कारण है। कारीगरों द्वारा कच्चे माल का उपयोग करने वाले 50 से अधिक प्रकार के ताले बनाए गए हैं।

कंडांगी साड़ियों का निर्माण शिवगंगा ज़िले में पूरे कराईकुडी तालुक में किया जाता है।

इन साड़ियों का कॉन्ट्रास्ट बार्डर इनकी प्रमुख विशेषता है और कुछ साड़ियों को कॉन्ट्रास्ट बॉर्डर से दो-तिहाई साड़ी कवर करने के लिये जाना जाता है जो आमतौर पर लगभग 5.10 मीटर 5.60 मीटर लंबी होती है। इसे प्रायः गर्मियों में पहना जाता है, इन सूती साड़ियों को आमतौर पर थोक में ग्राहकों द्वारा खरीदा जाता है।

  • वाणिज्य मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्‍यापार संवर्द्धन विभाग द्वारा प्रदत GI टैग।
  1. पलानीपंचामिर्थम तमिलनाडु के डिंडीगुल जिले के पलानी शहर की पलानी पहाडि़यों में अवस्थित अरुल्मिगु धान्‍दयुथापनी स्‍वामी मंदिर के पीठासीन देवता भगवान धान्‍दयुथापनी स्‍वामी के अभिषेक से जुड़े प्रसाद को कहते हैं।

इस अत्‍यंत पावन प्रसाद को एक निश्चित अनुपात में पाँच प्राकृतिक पदार्थों यथा- केला, गुड़-चीनी, गाय का घी, शहद और इलायची को मिलाकर बनाया जाता है।पहली बार तमिलनाडु के किसी मंदिर के प्रसादम को जीआई टैग(GI Tag) दिया गया है।

  1. तवलोहपुआन (Tawlhlohpuan)मिज़ोरम का एक भारी, मज़बूत एवं उत्कृष्ट वस्त्र,जो तने हुए धागों की बुनाई और जटिल डिज़ाइन के लिये जाना जाता है। इसे हाथ से बुना जाता है।

मिज़ो भाषा में तवलोह का मतलब एक ऐसी मज़बूत चीज़ होती है जिसे पीछे नहीं खींचा जा सकता है। मिज़ो समाज में तवलोहपुआन का विशेष महत्व है और इसे पूरे मिज़ोरम राज्य में तैयार किया जाता है। आइज़ोल और थेनज़ोल शहर इसके उत्पादन के मुख्य केंद्र हैं।

  1. मिज़ो पुआनचेई (Mizo Puanchei) मिज़ोरम का एक रंगीन मिज़ो शॉल/ वस्‍त्र है जिसे मिज़ो वस्‍त्रों में सबसे रंगीन वस्‍त्र माना जाता है।

मिज़ोरम की प्रत्‍येक महिला का यह एक अनिवार्य वस्‍त्र है और यह इस राज्य में यह शादी की अत्‍यंत महत्त्वपूर्ण पोशाक है। मिज़ोरम में मनाए जाने वाले उत्‍सव के दौरान नृत्‍य और औपचारिक समारोह में आमतौर पर इस पोशाक का ही उपयोग किया जाता है।

  1. केरल के तिरुर का पान का पत्‍ता

इसकी खेती मुख्‍यत:तिरुर, तनूर, तिरुरांगडी, कुट्टिपुरम, मलप्पुरम और मलप्‍पुरम ज़िले के वेंगारा प्रखंड की पंचायतों में की जाती है। इसके सेवन से अच्‍छे स्‍वाद का अहसास होता है और साथ ही इसमें औषधीय गुण भी हैं। आमतौर पर इसका उपयोग पान मसाला बनाने में किया जाता है और इसके कई औषधीय, सांस्‍कृतिक एवं औद्योगिक उपयोग भी हैं।

  • ओडिशा के रसगुल्ले को मिला GI टैग

वर्षों के विवाद के बाद हाल ही में ओडिशा की एक लोकप्रिय मिठाई रसगुल्ला को भौगोलिक संकेत टैग (Geographical Indication Tag) प्राप्त हुआ।ओडिशा और पश्चिम बंगाल दोनों ही रसगुल्ला को अपने क्षेत्र की उत्पत्ति बताते हैं। लेकिन ऐतिहासिक अभिलेखों द्वारा ज्ञात होता है कि ओडिशा का रसगुल्ला विश्व प्रसिद्ध पुरी जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है। 15वीं शताब्दी के अंत में बलराम दास द्वारा लिखित ओडिया रामायण से भी रसगुल्ले के बारे में जानकारी मिलती है। बलराम दास के रामायण को दांडी रामायण या जगमोहन रामायण के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसे जगमोहन या पुरी मंदिर में ही तैयार किया गया और गाया गया था। एक अन्य धार्मिक लिपि 'अजोध्या कांड' (Ajodhya Kanda) में रसगुल्ला सहित छेना और छेना आधारित उत्पादों का विस्तृत वर्णन मिलता है। बंगाल के रसगुल्ले को वर्ष 2017 में भौगोलिक संकेत टैग प्रदान किया गया था।

सरकार ने इस साल अब तक 14 उत्पादों को भौगोलिक संकेतक (GI) प्रदान किया है[सम्पादन]

हिमाचल का काला जीरा, छत्तीसगढ़ का जीराफूल और ओडिशा की कंधमाल हल्दी जैसे उत्पाद शामिल हैं। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (Department for Promotion of Industry and Internal Trade-DPIIT) के आँकड़ों के अनुसार,कर्नाटक की कुर्ग अरेबिका कॉफी, केरल के वायनाड की रोबस्टा कॉफी, आंध्र प्रदेश की अराकू वैली अरेबिका, कर्नाटक की सिरसी सुपारी और हिमाचल के चूली तेल को भी जीआई टैग प्रदान किया गया हैं।[१] खास भौगोलिक पहचान मिलने से इन उत्पादों के उत्पादकों को अच्छी कीमत मिलती है और साथ ही अन्य उत्पादक उस नाम का दुरुपयोग कर अपने सामान की मार्केटिंग भी नहीं कर सकते हैं।

तमिलनाडु के इरोड क्षेत्र में उगाई जाने वाली हल्दी को भौगोलिक संकेतक टैग प्राप्त[सम्पादन]

  • तमिलनाडु के कोयंबटूर ज़िले में स्थित इरोड और इसके आसपास के क्षेत्र कोडुमुडी,सिवागिरी,हवानी,गोबीचेट्टिपलायम,अन्थियूर,चेनमपट्टी,सत्यमंगलम और थलावाडी प्रमुख रूप से हल्दी की खेती के लिये प्रसिद्ध हैं
  • इन क्षेत्रों में चिन्ना नादान किस्म की हल्दी का उत्पादन बड़े पैमाने पर एक महत्त्वपूर्ण वाणिज्यिक मसाला फसल के रूप में किया जाता है।
  • इस हल्दी के उत्पादन के लिये गर्म और नम जलवायु की आवश्यकता होती है और जिसके लिये यह ज़िला अनुकूल है क्योंकि यहाँ का तापमान 20 से 37.9 डिग्री सेल्सियस तक होता है।
  • हल्दी के लिये दोमट या जलोढ़ मिट्टी सबसे अच्छी होती है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि ऐसा माना जाता है कि 2000 ईसा पूर्व के संगम युग के दौरान तमिल किसानों द्वारा अपने घरों के सामने हल्दी के पौधे उगाए जाते थे। इस बात के प्रमाण हैं कि हल्दी का उत्पादन चेर,चोल और पांड्य के समय भी किया जाता था। हल्दी का धार्मिक और सामाजिक-सांस्कृतिक परंपराओं में अधिक महत्त्व है क्योंकि इसे एक शुभ और पवित्र जड़ी-बूटी माना जाता है। खाद्य पदार्थों में सुगंध एवं रंग के लिये इसका इस्तेमाल किया जाता है, साथ ही दवा और सौंदर्य प्रसाधनों आदि में भी हल्दी उपयोगी है।

  • केरल के इडुक्की ज़िले में स्थित मरयूर के गुड़ को भौगोलिक संकेतक का दर्ज़ा प्राप्त हुआ।

इस गुड़ का निर्माण पारंपरिक तरीके से किया जाता है।

  • महाराष्ट्र स्थित सांगली की हल्दी को भारतीय पेटेंट कार्यालय से 27 जून 2018 को ज्योग्राफिकल इंडेक्स (जीआई) रैकिंग प्रदान की गई।[२]

जीआई टैग[सम्पादन]

भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication) का इस्तेमाल ऐसे उत्पादों के लिये किया जाता है, जिनका एक विशिष्ट भौगोलिक मूल क्षेत्र होता है। इन उत्पादों की विशिष्ट विशेषता एवं प्रतिष्ठा भी इसी मूल क्षेत्र के कारण होती है। इस तरह का संबोधन उत्पाद की गुणवत्ता और विशिष्टता का आश्वासन देता है।

  • औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिये पेरिस कन्वेंशन (Paris Convention for the Protection of Industrial Property) के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक घटक के रूप में शामिल किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर GI का विनियमन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के बौद्धिक संपदा अधिकारों के व्यापार संबंधी पहलुओं (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights-TRIPS) पर समझौते के तहत किया जाता है।
  • वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर यह कार्य ‘वस्तुओं का भौगोलिक सूचक’ (पंजीकरण और सरंक्षण) अधिनियम, 1999धारा 16 (I) या अधिकृत धारा 17 (3)(c)के तहत किया जाता है, जो सितंबर 2003 से लागू हुआ।
  • वर्ष 2004 में ‘दार्जिलिंग टी’ जीआई टैग प्राप्त करने वाला पहला भारतीय उत्पाद है। भौगोलिक संकेतक का पंजीकरण 10 वर्ष के लिये मान्य होता है।
  • महाबलेश्वर स्ट्रॉबेरी, जयपुर की ब्लू पॉटरी, बनारसी साड़ी और तिरुपति के लड्डू तथा मध्य प्रदेश के झाबुआ का कड़कनाथ मुर्गा सहित कई उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है।
  • जीआई टैग किसी उत्पाद की गुणवत्ता और उसकी अलग पहचान का सबूत है। कांगड़ा की पेंटिंग, नागपुर का संतरा और कश्मीर का पश्मीना भी जीआई पहचान वाले उत्पाद हैं।

संदर्भ[सम्पादन]

डैली करंट अफेयर्स

https://www.nowgk.com/?m=1

  1. https://economictimes.indiatimes.com/hindi/markets/commodities/news/14-products-got-geographical-indication-tag-so-for-in-2019/articleshow/68939075.cms?from=mdr
  2. https://www.jagranjosh.com/current-affairs/sangli-turmeric-gets-gi-tag-in-hindi-1530168009-2