हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/नये इलाके में
संदर्भ
[सम्पादन]प्रस्तुत पंक्ति आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख प्रगतिशील कवि अरुण कमल द्वारा कविता संग्रह से नए इलाके में से लिया गया है अरुण कमल की कविताओं में जीवन के विविध क्षेत्रों का वर्णन मिलता है|
प्रसंग
[सम्पादन]प्रस्तुत काव्य में कवि वर्तमान समय में चल रहे निर्माण के ऊपर व्यंग करते हुए कहना चाह रहे हैं की इस दुनिया में कुछ भी स्थाई नहीं है हर वस्तु को समय से साथ बदलते परिस्थितियो को दिखाया गया है इन्होंने इस कविता के माध्यम से आधुनिक समाज में प्रतिदिन होते निर्माण की बात कर रहे हैं इन्होंने सिर्फ अंधाधुन निर्माण की वजह से अब खुद के घर को पहचानना भी मुश्किल होता जा रहा है
व्याख्या
[सम्पादन]प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने शहर में हो रहे अंधाधुंध निर्माण के बारे में बताया है रोज कुछ ना कुछ बदल ही रहा है आज अगर कुछ टूटा हुआ है या कहीं कोई खाली मैदान है ,तो कल वहां बहुत ही बड़ा मकान बन चुका होगा नए-नए मकान बनने के कारण रोज नए नए इलाके भी बन जा रहे हैं जहां पहले सुनसान रास्ता हुआ करता था आज वहां काफी लोग रहने लगे हैं और चहल पहल दिखने लगी और यही कारण है कि लेखक को रास्ते पहचानने में तकलीफ होती है और वह अक्सर रास्ता भूल जाता है लेखक अपने रास्ते भूल जाने का कारण बताता है लेखक अब जिस घर, जिस मैदान ,और जिस फाटक को अपने लिए चिन्नू बना कर रखा था जिसे देख कर उन्हीं पता चलता था कि वे सही रास्ते पर चल रहे हैं उन चिन्नू में से कोई भी अपनी जमीन पर नहीं है अब लेखक के खोजने के बाद भी उन्हें पुराना पीपल का पेड़ नहीं दिखाई देता है और ना ही आप उन्हें वह खाली में जमीन कहीं दिखाई दे रहा हैं जहां लेखक को बाय मुड़ना होता था उसके बाद ही वह उनका जाना पहचाना था बिना रंग के लोहे के फाटक वाला एक मंजिल पर था उन्हीं कारणों की वजह से लेखक हमेशा रास्ता भटक जाता है वह कभी भी सही ठिकाने तक नहीं पहुंच पाता या तो वे एक दो घर आगे निकल जाता है या फिर एक दो घर पहले ही रुक जाता है यह रोज कुछ ना कुछ बन रहा है किसी ना किसी इमारत का निर्माण हो रहा है जिसकी वजह से आप अपने रास्ते को पहचानने के लिए किसी इमारत या पेड़ को स्मृति नहीं बना सकते । यहाँ कल उसी जगह पर कुछ और बन जाए और आप रास्ता भटक जाए कवि ने शीघ्र होते हुए परिवर्तन के बारे में कहते हैं ऐसा नहीं है कि कवि कुछ समय के बाद यहां लौटा है इसीलिए उसे सब बदला हुआ प्रतीत हो रहा है ऐसा नहीं है कि वह बसंत के बाद पतझड़ को लौटा है ऐसा नहीं है कि वह वैशाख को गया और भादो को लौटा है वह तो कुछ ही दिनों में वापस आया लेकिन फिर भी उसे सब बदला हुआ दिख रहा है और वह अपना घर भी नहीं पहचान पा रहा अब तो एक उपाय यही है कि कवि हर घर में खटखटाया और और पूछे कि क्या यही वह घर है
विशेष
[सम्पादन]1:- नये इलाके मे कवि बदलती हूई युगीन परिस्तिथितियो, मूल्यो व संवेदनाओं में होने वाले परिवर्तन को रेखांकित किया है।
2:- कवि ने कविता मे बहुवचन का प्रयोग किया है।
3:- अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है तथा निर्माण शैली है।
4:- समय की कमी की ओर इशारा किया गया है।
5:- कवि की दृष्टि मूल रूप से पद, नाम, स्मृति-चिन्ह तथा दृष्टि पर रही है।
6:- भाषा मे व्यंग्य। प्रगतिशील विचारधारा को प्यप्त स्थान मिला है।