हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका/मोचीराम

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हिंदी कविता (छायावाद के बाद) सहायिका
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मोचीराम

संदर्भ[सम्पादन]

प्रस्तुत अवतरण साठोत्तरी कवि धूमिल द्वारा रचित उनकी कविता मोचीराम से अवतरित हैं। इसमें कवि ने मोचीराम के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है । कवि सामाजिक व्यवस्था पर व्यंग करता हैं। कवि कहता हैं कि हर आदमी को अपनी सीमा एवं दायरा मालूम होना चाहिए जैसे मोचीराम का जो काम है,वो वह काम बखूबी कर रहा हैं। कवि ने मोचीराम के दुख को व्यक्त किया हैं।

प्रसंग[सम्पादन]

प्रस्तुत अवतरण साठोत्तरी कवि धूमिल द्वारा रचित उनकी कविता मोचीराम से अवतरित है। इसमें मोचीराम ने कवि को बताया है कि वह अपने काम से मतलब रखता है ।उसकी सोच में सभी एक समान है। उसका काम लोगों के जूतों की मरम्मत करना है। उसे इससे कोई लेना-देना नहीं है कि कौन छोटा है और कौन बड़ा है। वह तो सभी को एक समान देखता है। इसमें कवि ने मोचीराम के माध्यम से अपने विचारों की अभिव्यक्ति की है। कवि कहता है की हर आदमी को अपनी सीमा एवं दायरा मालूम होना चाहिए जैसे मोचीराम का जो काम है वह वे काम बखूबी कर रहा है ।उसकी फटेल जिंदगी मैं कुछ भी नया नहीं है वे जहां है वही है यही उसकी सीमा है। हर आदमी इस उम्मीद में जीता है कि कभी तो अच्छे दिन आएंगे। गरीब आदमी कभी उम्मीद नहीं छोड़ता है। कवि कहता है कि फटे जूते से आदमी की औकात एवं पहचान का पता लगता हैं। वे नए जूते खरीदने के बजाएं उसे ही ठीक कर आता है, जबकि मोचीराम उसे ठीक करते हुए मन से दुखी हैं। वे बाबू जी को मना भी करता है। कवि कहता है वह लालची और आडंबर प्रिय व्यक्ति है ।फटे जूते ही ठीक कर आता है जिससे पता चलता है कि वह लालची है।

मोचीराम के माध्यम से कवि उस बनिए की हरकत और बेशर्मी का यथार्थ वर्णन करता है। कवि ने मोचीराम केे दुख को व्यक्त किया है क्योंकि बनिया उसको उसकी मेहनत के पूरे पैसे नहीं देता है, और उसकी अभद्र भाषा भी सुनता है मोचीराम दुखी है। कवि का मानना है की पेशा एक व्यक्ति का बोध कराता है, जबकि भाषा पर किसी भी जाति का हक है। उस पर सबका अधिकार है। भाषा स्वतंत्र है। मगर आदमी को भाषा का प्रयोग संभाल कर करना चाहिए। कवि उसे समझाता है कि आदमी की जिंदगी को किताब से नहीं मापा जाता है वह अनुभव का विषय है ।

इसमें कवि ने शब्द ज्ञान और शब्द अज्ञान पर चर्चा की है । गरीब अपमान सहकर खुद को चुप कर लेता है, मगर यह अन्याय नहीं है। कवि कहता है ऐसे पेट की आग की वजह से होता है ।

व्याख्या[सम्पादन]

{1} मोचीराम के हाथ में जूतों की मरम्मत करने वाला उपकरण है। वह अपने आंखों को ऊपर उठाकर कवि को थोड़ी देर तक देखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि यह कवि में कुछ ढूंढने का प्रयास कर रहा है। मानो वह कुछ सोचकर टटोलता है। ऐसा कवि को अनुभव होता है। वह इसे स्वीकार करता है। उसके बाद वह कभी से कुछ कहने या बतलाने की मुद्रा में वह हंसते हुए बोला सच कहूं बाबूजी मेरी नजर में ना कोई छोटा है ना कोई बड़ा है ,अर्थात मेरी दृष्टि में सभी समान है। वह आगे कहता है कि मेरे लिए हर आदमी एक जोड़ी जूता है जो भी मेरे सामने खड़ा है वह अपने जूते की मरम्मत कराने के लिए खड़ा है। मेरा काम उसके जूते की मरम्मत करना है ।इससे ज्यादा मेरे लिए कुछ नहीं है वह सब को एक समान समझता है।

{2} जो जहां है वह वही है। उसमें कोई परिवर्तन नहीं है। वह जिस हालत में रह रहा है ,उसी में वह जी रहा है। अर्थात जितनाा जूते का साइज है, वह उतना ही है वही उसकी सीमा है ।मुझे ध्यान है ,पता है और हमेशा ध्यान रखता है कि मैं एक पेशेवर जूतों की मरम्मत करने वाला मोची हूं। इससे अधिक में कुछ नहीं । वह बताता है जूते जिस तरह फटे होते हैं वैसे ही मैं भी फटे हाल में हूं। अर्थात वह गरीबी में जी रहा है। यही उसकी नियति है । वह अपने दुखों को दूर करने का कोई ना कोई उपाय करता है ।ठीक वैसे ही जैसे फटे जूते को सीने के लिए उसमें टांके लगाए जाते हैं ताकि वह ठीक हो जाए। यह राम हथौड़ी की मारी चोट के समान ही है ।मेरे पास तरह-तरह के लोग आते हैं ।वह अपने फटे हुए जूते ठीक कराते हैं ।कहने काा अर्थ यह है कि मुझे किस्म-किस्म के लोग दिखाई देते हैं। हर एक की स्थिति अलग होती है। वे अलग-अलग रूप में आदमी दिखाई देते हैं पर सब एक समान है परिस्थितियां अलग अलग है।

{3} इन पंक्तियों में मोचीराम कहता हैै कि मेरे पास तरह-तरह के अलग-अलग रूप में आदमी आते हैं जूते ठीक कराने के लिए। मेरे पास आते हैं वह अपने आप ही चुप रह कर अपनी औकात,वजूद और नए पन को व्यक्त करते हैं। उनके स्वरूप और बनावट में विभिन्नता होती है। ठीक उसी प्रकार एक जूता है मगर अलग-अलग रूप में होता है हर आदमी इस उम्मीद में जीता हैै की की कभी तो हम नए जूूते पहनेंगे। गरीब आदमी कभी उम्मीद नहीं छोड़ता हैै। अभी कहता है उसकी उम्मीद ठीक ऐसी है जैसे टेलीफोन के खंभे पर एक पतंग उसमें उलझ कर फंस जाती है इस आशा में मैं इस बंधन से जल्द ही मुक्तत होंगी।

{4} मोतीराम कहता है कि बाबूजी जूते की मरम्मत पर पैसा खर्च मत करो वह अपने में जर्जर हो गया हैैं। वह यह कहते हुए मन में शर्मिंंदा है। आवाज में एकलापन हैं। वह कहता हैै कि मैं भीतर से कांप रहा हूं। मेरे अंदर से आवाज आती हैै कि पता नहीं किस तरह का आदमी है। नए जूते नहीं ले पा रहे हैं।यह भी कहता है कि तुम अपनी मनुष्य जाति पर क्यों थूक रहे हो। जो जूते की हालत को नहीं देख पा रहा। कोई जगह नहीं खाली जहां टांके नहीं लगा रहा हूं, बल्कि उसमें अपनी आंखें गाड़ रहा हूँ। दूसरे जूते की ऐसी हालत है उसमें से पैर बाहर निकलने को आता है। उसे देख कर मेरा दिल और भी दुखी है।

{5} मोचीराम कहता है कि वह पंसारी जो अपने जूते को ठीक करवा रहा है, मोचीराम की दृष्टि में नादान, नासमझ और धीमी बुद्धि वाला व्यक्ति वह समय का पाबंद है, काम का कितना नुकसान हो रहा है। टूटे-फूटेे तथा फटे जूते को ठीक पर ठीक कर आता जा रहा है। वह उनकी जगह नया जूता नहीं लेना चाहता। वह पैसा बचाना चाहता है। वैसे उसने अपने हाथों में घड़ी पहन रखी है मगर उसे जाना कहीं नहीं हैं । उसके चेहरे पर बहुत परेशानी झलक रही है। वह बताते और अभिनय से कर रहा था जैसेेेेेेे कितना बड़ा दुनिया का ज्ञानी हो बोलता जा रहा था। इसे बांधो ,उसे काटो ,वहां पीटकर ठीक करो ,इसे किस दो ,इसे इसी तरह चमकाओ, जूते को ऐसे बनाओ, लगातार वह दिशा निर्देश देता है।

{6} मोतीराम कहता है वह आदमी जो बनिया लगता है। जेब से रुमाल निकालता है और गर्मी होने का दिखावा करता है ।अर्थात वह गर्मी को कोसता है। वह सड़क पर आते जाते लोगों को बंदर की भांति घूरने लगता है। जैसे उन में कुछ ढूंढ रहा हो। वह काफी देर तक काम करवाता रहा है,परंतु जब पैसे की बारी देने की आई तो पैसों के नाम पर कुछ सिक्के फेंक देता है। ऊपर से वह कह रहा है कि शरीफों को लूटते हो, पैसे देने से इनकार करता है। कभी कहता है ऐसा दिखाओ कि लोग समाज में बहुत है।

{7}जब किसी के पेशे पर चोट लगती है तो उसका दिल बहुत दुखी होता है। दिल रो उठता है । जब किसी को अपनी मेहनत का फल ना मिले तो मन दुखी अवश्य होता है जैसे मुझे राम को जूता ठीक करने पर कुछ सिक्के ही मिले। कवि कहता है कि उसके मन में कोई दबी हुई भावना कील के रूप में उभर कर सामने आ गई। उसके ऊपर जाने से वह मन ही मन आहात हुआ है की लाज मौका पाकर उभर गई और उंगली में गढ़ गई। मगर इसका अर्थ यह नहीं कि मुझे कोई संदेह हुआ हो। कवि कहता हैै कि मुझे इस बात का एहसास है, कि कहीं ना कहीं मेरे पैसे और जूते केेेे बीच कोई अंतर है यह अंतर का कारण है आदमी है। वह एक छोटा आदमी। छोटी हरकत करता है। जूते ठीक करा ते समय अंगूठे पर हथौड़े की चोट पड़ती है तो उस दर्द को वह दिल में छुपा लेता है। अर्थात मोतीराम को काम करते वक्त दर्द तो होता है पर वह सहन कर लेता है।

{8} कवि कहता है कि जब कोई चुभती हुई बात कहता है तो मन में दुख उत्पन्न हो जाता है। काम को शराफत के साथ करने के बाद यदि तीखी भाषा सुननी पड़े तो मन में दुख होता है। मन में बच्चे की तरह झुंझलाहट और खींच होने लगती है। उस समय मेरे लिए बहुत कठिन हो जाता है, राखी की मूठ को पकड़कर चमड़ा काटना। मन काम में ऐसे उचट जाता है और हाथ कहीं और दिल दिमाग में तालमेल खत्म हो जाता है। मानसिक थकान, शारीरिक थकान से बड़ी कष्ट कार है। मन भी काम करने से मना करने लगता है। लगता है चमड़े के पीछे को जंगल है जो आदमी पर पेड़ से वार करता है ,और यह आश्चर्य की बात नहीं सोचने की बात है।

{9} कवि कहता है कि किसी भी तरह से जिंदगी को किताब के आधार पर नहीं मापा जाता। जो ऐसा करता है वह असलियत अर्थात वास्तविकता को नहीं समझता हैैं। इसका मतलब यह है कि वह असलियत और अनुभव के बीच के रिश्ते को नहीं पहचानता हैैं। वह खून के अवसर पर या किसी घटिया अवसर पर अपनी कायरता का परिचय देता है। यह बड़ी दिलचस्प बात है कहने से कोई कुछ हो नहीं जाता। यह तो अनुभव का विषय है, भाषा के प्रयोग का नहीं भाषा पर सभी का अधिकार है । वह मौके पर बोल देता है यह कोई भी कह जाता है। तुम जो हो वही हो। पैसा एक जाती है ,भाषा एक जाती है, वह सभी की है उस पर सभी का अधिकार है।

{10} कवि इस विषय में कहता है जबकि वास्तविकता यह है की पेट की आग और सीने की जलन सभी को जलाती है।आग किसी को भी नहीं छोड़ती है । वह सब को जलाती है। मोचीराम जैसा आदमी पेट की आग की वजह से चुप जाते है ,क्योंकि उनका पेशा यही है। वैसे छोड़कर नहीं जा सकते हैं। वे पढ़े-लिखे नहीं होते हैं। वे केवल अनुभव करते हैं। कवि कहता है कि मैं जानता हूं कि उनमें मना करने वाली एक चिल्लाहट अवश्य है वह सीखना चाहते हैं। वे अपना विरोध प्रकट करते हैं। मगर समय की मांग के अनुसार चुपचाप रहना पसंद करते हैंं। यही एक समझदारी है कि चुप रहा जाए। कवि कहता है कि चीख और चुप दोनों का अपना समय के अनुसार महत्व और कर्तव्यय है। शक्ति दोनों में ही है दोनों अपना समय-समय पर फर्ज़ अदा करते हैं।

विशेषता[सम्पादन]

1~मोचीराम राम की दृष्टि में सभी सामान हैं।

2~भाषा सरल एवं स्वाभाविक हैं।

3~कवि ने आम आदमी की भाषा को अपनाया हैं ।

4~भाषा में व्यंगात्मकता हैं।

5 ~शब्दों में सरलता दिखाई देती हैं।

6~कवि ने सामाजिक यथार्थ का उद्घाटन किया हैं।

7~कवि ने गरीबी की झलक को जूते के माध्यम से दिखाया हैं।

8~कवि उस बनिए का वर्णन करता है, जो काम कराने के बावजूद भी पूरे पैसे नहीं देता हैं।

9~इसमें यथार्थ का चित्रण हुआ हैं।

10~उर्दू शब्दों की प्रधानता हैं।

11~इसमें उपदेशत्मक शैली अपनाई गई हैं।