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हिंदी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास/भारत में लिपि का इतिहास

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हिंदी भाषा और उसकी लिपि का इतिहास
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भारत में लिपि का इतिहास

भारतवर्ष में लिपि का इतिहास बहुत पुराना है। लिपि के क्षेत्र में भारत विश्व गुरु रहा है। भारत के परंपरागत मान्यता के अनुसार लिपि के आविष्कारक स्वयं ब्रह्मा है। जिन्होंने ब्राह्मणी लिपि बनाई लेकिन भारत के प्रसिद्ध भाषावैज्ञानिक भोलानाथ तिवारी के अनुसार- "मनुष्य ने अपनी आवश्यकता अनुसार लिपि को स्वयं जन्म दिया है। आरंभ में मनुष्य ने इस दिशा में जो कुछ भी किया था वह इस दृष्टि से नहीं किया कि उससे लिपि विकसित हो। बल्कि जादू टोने के लिए कुछ रेखाएं खींची होंगी, धार्मिक दृष्टि से किसी देवता का चित्र या अन्य चिन्ह बनाएं, सुंदरता के लिए गुफाओं की दीवारों पर जीव जंतु एवं वनस्पति के चित्र या स्मरण के लिए रस्सी में गांठे आदि लगाई और बाद में इन्हीं साधनों का प्रयोग विचारों की अभिव्यक्ति के लिए किया गया और वह धीरे-धीरे विकसित होकर नीति बन गई।" लिपि के संबंध में दो प्रकार के मत सामने आए हैं--

पहला मत भारतीय विद्वानों का है, जो मानते हैं कि भारतीय लिपियों का विकास भारत में हुआ है। दूसरा मत यूरोपीय विद्वानों का है, जो मानते हैं कि भारतीय लिपियों का उद्भव बेबीलोन, मिश्र और यूरोप के निकट के स्थानों में प्रचलित लिपियों से हुआ।

परंतु गौरी शंकर और हीरा चंद्र ओझा ने प्राचीन भारतीय लिपि माला में भारत में लिपि ज्ञान की प्राचीनता सिद्ध की और यह सिद्ध हो गया कि 2000 ई. पू. वर्ष पहले भी भारत में सेंधव लिपि प्रचलित थी। और यह विश्व की प्राचीनतम ज्ञान लिपि है।

इसी संदर्भ में पाश्चात्य विद्वानों के तर्क और मत का विरोध करते हुए शिलालेखों की लिपि को प्रमाण रूप में प्रस्तुत किया गया है। जिसे तीन भागों में बांटा गया है-

१. वैदिक ग्रंथों के प्रमाण- ऋग्वेद में ज्योतिष संबंधी अनेक सूक्त हैं जो अंको के अविष्कार की सूचना देते हैं ऐतरेय ब्राह्मण (३३/४/१/५) में छंदों के अक्षरों का विश्लेषण है, जिससे वर्णमाला के विकास की सूचना मिलती है।

२. संस्कृत ग्रंथों के प्रमाण- बाल्मीकि रामायण में हनुमान व सीता के बीच हुए संवाद में लिपि और भाषा के संकेत मिलते हैं। पाणिनि कृत 'अष्टाध्याई' में लिपि ग्रंथ और लिपिक जैसे शब्दों का प्रमाण मिला है।

३. बौद्ध एवं जैन ग्रंथों के प्रमाण- 'समवायंणसूत्र' एवं 'पणवणासूत्र' में १८ लिपियों का वर्णन मिलता है जिनमें प्रथम नाम ब्राह्मी का है। बौद्ध ग्रंथ 'ललितविस्तार' सूत्र में भी भारत के ६४ लिपियों का उल्लेख है।

मोहनजोदाड़ो और हड़प्पा की खुदाई से अनेक मुहरे मिली इन मुहरों पर अंकित लिपि संकेत तथा चित्रों के आधार पर भारतीय लिपि की प्राचीनता सिद्ध हुई।