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- प्रथम परिचय रवि-तनया के तट पर सहज रूप से होता है। एक दूसरे के सौन्दर्य,वाक्चातुरी तथा क्रीड़ा-कला पर मुग्ध वे परस्पर स्नेह-बंधन में बंध जाते हैं। यही...६ KB (४५१ शब्द) - ०५:०४, २६ जुलाई २०२१
- हैं। कृष्ण की प्राप्ति के लिए वे कठोर से कठोर व्रत तथा उपवास आदि का पालन करती हैं। और उनके लिए वे कुल के बन्धन ,समाज के बन्धन इहलोक तथा परलोक सभी कुछ...११ KB (८१६ शब्द) - ०५:०२, २६ जुलाई २०२१
- मातृभूमि—मैथिली शरण गुप्त नीलांबर परिधान हरित तट पर सुन्दर है। सूर्य-चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है॥ नदियाँ प्रेम प्रवाह, फूल तारे मंडन हैं। बंदीजन...५ KB (३३१ शब्द) - ०५:००, ३० जुलाई २०२१
- सदा सख्य की स्वेच्छा और स्वच्छन्दता रही है, वह कभी भ्रातृत्व के या बड़े-छोटेपन के बन्धनों में नहीं घिरा... मैं आज कोई चार वर्ष बाद उसे देखना आया हूँ। जब...४६ KB (३,९११ शब्द) - ०५:०५, ३१ मई २०२१
- रूढ़ियों के बन्धन में पड़कर कष्ट भोगता रहे। क्यों न ऐसे सामान इकट्ठा किए जाएँ कि वह गुलामी और गरीबी से छुटकारा पा जाये? वह इस वेदना को जितनी बेचैनी के साथ...७२ KB (५,६५२ शब्द) - ०४:५५, २५ जुलाई २०२१
- रूढ़ियों के बन्धन में पड़कर कष्ट भोगता रहे। क्यों न ऐसे सामान इकट्ठा किए जाएँ कि वह गुलामी और गरीबी से छुटकारा पा जाये? वह इस वेदना को जितनी बेचैनी के साथ...७० KB (५,५३९ शब्द) - ११:४८, ४ जनवरी २०२२
- कि “सुभद्रा जी का आज चल बसना, प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों।...५५ KB (४,२३८ शब्द) - १७:१९, २५ दिसम्बर २०२१
- सदा सख्या की स्वेच्छा और स्वच्छन्दता रही है, वह कभी भ्रातृत्व के, या बड़े-छोटेपन के बन्धनों में नहीं घिरा... मैं आज कोई चार वर्ष बाद उसे देखने आया हूँ।...४५ KB (३,८४१ शब्द) - ०४:५५, २५ जुलाई २०२१
- अपकीर्ति के समुद्र में इस तरह आकण्ठ मग्न थी कि झनकू का प्रस्ताव उसके लिए जहाज बन गया। इस प्रकार अपने मन को मुक्त रख कर भी झनकू ने बिबिया को दाम्पत्य- बंधन में...६६ KB (५,५०३ शब्द) - ०८:५४, १० जनवरी २०२२
- अपकीर्ति के समुद्र में इस तरह आकण्ठ मग्न थी कि झनकू का प्रस्ताव उसके लिए जहाज बन गया। इस प्रकार अपने मन को मुक्त रख कर भी झनकू ने बिबिया को दाम्पत्य- बंधन में...६६ KB (५,५०३ शब्द) - १६:१६, ३० जनवरी २०२२
- अपकीर्ति के समुद्र में इस तरह आकण्ठ मग्न थी कि झनकू का प्रस्ताव उसके लिए जहाज बन गया। इस प्रकार अपने मन को मुक्त रख कर भी झनकू ने बिबिया को दाम्पत्य- बंधन में...६६ KB (५,५०३ शब्द) - ०४:५५, २५ जुलाई २०२१
- पर अपरिवर्तनीय रासायनिक बंधन होते हैं, जबकि पॉली (डाइकेटोनेमाइन)/(Poly Diketoenamine) या PDK में ऐसे परिवर्तनीय रासायनिक बंधन होते हैं जो प्लास्टिक को...११७ KB (८,५७४ शब्द) - ०१:११, १६ अगस्त २०२१
- जैसे हँस दिया हो!" नए कवियों ने छंद के बंधन को स्वीकार न करके मुक्त परंपरा में ही विश्वास रखा है। कहीं लोकगीतों के आधार पर रचना की है, कहीं अपने क्षेत्र...७२ KB (५,३६२ शब्द) - ०१:४७, ४ फ़रवरी २०२४
- कि “सुभद्रा जी का आज चल बसना, प्रकृति के पृष्ठ पर ऐसा लगता है मानो नर्मदा की धारा के बिना तट के पुण्य तीर्थों के सारे घाट अपना अर्थ और उपयोग खो बैठे हों।...५५ KB (४,२३८ शब्द) - ०५:०३, २५ जुलाई २०२१
- के उपन्यासों में स्त्री-पुरुष के रूपाकर्षण और प्रेम के चित्र हैं। उनके ‘गुप्त धन’, ‘चलते-चलते’, ‘पतवार’, ‘उनसे न कहना’, ‘रात और प्रभाव’, ‘टूटते बन्धन’...६७ KB (४,५११ शब्द) - १४:५९, २८ जनवरी २०२१
- हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल)/भारतेन्दु और द्विवेदी-युगीन काव्य की प्रवृत्तियाँ (अनुभाग रीति-निरुपण के परम्पराबध्द ग्रंथो की रचना)सब सारों का सार विश्वप्रेम के बंधन ही में, मुझ को मिला मुक्ति का द्वार। वस्तुत: जीवन, जगत और प्रकृती में व्याप्त ईश्वर के प्रती कवि की अभिव्यक्ति भावना...१३० KB (७,९१६ शब्द) - ०४:५८, २५ जुलाई २०२१
- महाकवि सुबन्धु का व्यक्तित्त्व एवं कर्तृत्व (अनुभाग श्री आर0सी0 मजूमदार के अनुसार वासवदत्ता में कंक)करने के पश्चात् ये राजा को प्रसन्न करके बन्धन से मुक्त हुए थे। इस तथ्य का वर्णन महाकवि दण्डी की अवन्तिसुन्दरी कथा में प्राप्त होता है।7 मैक्डोनल के अनुसार...७५ KB (५,१९४ शब्द) - १०:०१, २८ जुलाई २०१६
- है। कविता में छन्द, अलंकार, शब्द, मात्रा, वर्ण आदि के बन्धनों के कारण व्यक्तियों तथा स्थानों के नाम के खण्डों की मात्राओं और अक्षरों को आगे-पीछे कर दिया...२७७ KB (२०,८४९ शब्द) - १६:४०, २८ सितम्बर २०१८