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आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता/अमीर खुसरो

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आदिकालीन एवं मध्यकालीन हिंदी कविता · कबीर →

अमीर खुसरो के दोहे

गोरी सोवे सेज पर, मुख पर डारे केस।
चल खुसरो घर आपने, सांझ भयी चहु देस॥[]

व्याख्या

खुसरो रैन सुहाग की, जागी पी के संग।
तन मेरो मन पियो को, दोउ भए एक रंग॥[]

व्याख्या

देख मैं अपने हाल को रोऊँ ज़ार–ओ–ज़ार।
वै गुनवन्ता बहुत हैं हम हैं औगुनहार॥[]

व्याख्या

चकवा चकवी दो जने उनको मारे न कोय।
ओह मारे करतार कै रैनविछौही होय॥[]

व्याख्या

सेज सूनी देख के रोऊँ दिन–रैन।
पिया–पिया कहती मैं पल भर सुख न चैन॥[]

व्याख्या

संदर्भ

  1. अमीर खुसरो, हरिकृष्ण देवसरे, सस्ता साहित्य मंडल, २०१२, पृष्ठ - ९६
  2. अमीर खुसरो, हरिकृष्ण देवसरे, सस्ता साहित्य मंडल, २०१२, पृष्ठ - ९६
  3. अमीर खुसरो, हरिकृष्ण देवसरे, सस्ता साहित्य मंडल, २०१२, पृष्ठ - ९८
  4. अमीर खुसरो, हरिकृष्ण देवसरे, सस्ता साहित्य मंडल, २०१२, पृष्ठ - ९८
  5. अमीर खुसरो, हरिकृष्ण देवसरे, सस्ता साहित्य मंडल, २०१२, पृष्ठ - ९८