हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श
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१९वीं सदी में खड़ी बोली हिंदी गद्य के विकास के साथ-साथ आलोचना के उद्भव और विकास की प्रक्रिया आरंभ होती है। हिंदी आलोचना का आरंभ भारतेंदु युग से माना जाता है। हिंदी के मानक स्वरूप को निर्धारित करते हुए महावीर प्रसाद द्विवेदी ने हिंदी आलोचना के विकास को नयी दिशा और गति प्रदान की। हिंदी आलोचना के प्रतिमान निर्धारण में रामचंद्र शुक्ल प्रस्थान बिंदु माने जाते हैं। वास्तव में हिंदी आलोचना का सुसंगत विकास शुक्ल युग से ही माना जाता है। हिंदी आलोचना की यह विचार-प्रक्रिया नंददुलारे वाजपेयी, हजारीप्रसाद द्विवेदी, नगेंद्र, रामविलास शर्मा, नामवर सिंह, मैनेजर पांडे आदि के माध्यम से विकसित होते हुए समकालीन विमर्शों तक पहुँचती है।
विषय सूची
[सम्पादन]- हिंदी आलोचना का उद्भव
- भारतेंदु युगीन हिंदी आलोचना
- द्विवेदी युगीन हिंदी आलोचना
- रामचंद्र शुक्ल की सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना
- हजारी प्रसाद द्विवेदी की सांस्कृतिक आलोचना
- आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी की आलोचना पध्दति
- नगेंद्र की रसवादी और मनोवैज्ञानिक समीक्षा
- प्रगतिवादी समीक्षा की परंपरा
- रामविलास शर्मा की आलोचना पद्धति
- नामवर सिंह की आलोचना पद्धति
- स्त्री विमर्श
- दलित विमर्श
- आधुनिकता
- उत्तर आधुनिकता
- संरचनावाद