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  • जगह होती है ऐसी जो छूट जाने पर औरत हो जाती है। कटे हुए नाख़ूनों, कंघी में फँस कर बाहर आए केशों-सी एकदम से बुहार दी जाने वाली? घर छूटे, दर छूटे, छूट गए...
    ३ KB (२३४ शब्द) - १६:३१, ३० जून २०२०
  • बन्धु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बन्धु! वह हँसी बहुत कुछ कहती थी, फिर भी अपने में रहती...
    १,००६ B (७१ शब्द) - ०४:५७, २५ जुलाई २०२१
  • विवशता नहीं कुतूहल खरीदती है। भूखी बिल्ली की तरह अपनी गरदन में संकरी हाँडी फँसाकर हाथ-पैर पटको, दीवारों से टकराओ, महज छटपटाते जाओ, शायद दया मिल जाए: दुनिया...
    २ KB (१६३ शब्द) - १७:४०, ६ दिसम्बर २०२१
  • विचलित हो गया था। उसे महसूस हो रहा था कि वे सब किसी घने बियाबान जंगल में फँस गए हैं जहाँ चारों ओर सिर्फ अँधेरा है या कँटीले झाड़-झंखाड़। इन्दु रसोईं से...
    ४० KB (३,२८१ शब्द) - १०:५५, ९ अक्टूबर २०२१
  • बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बंधु! वह हँसी बहुत कुछ कहती थी, फिर भी अपने में रहती...
    ७७८ B (५९ शब्द) - ०५:०१, २५ जुलाई २०२१
  • उस पर उम्मीद को तरह देती हुई हंसी है जैसे 'टेलीफू़न' के खम्भे पर कोई पतंग फंसी है और खड़खड़ा रही है। बाबूजी! इस पर पैसा क्यों फूंकते हो? मैं कहना चाहता...
    ९ KB (७६६ शब्द) - १०:२३, २७ मई २०२२
  • करता है। किन्तु उनकी इच्छा मन में रह गई अर्थात वे असमय ही काल के जाल में फंस गए और अपनी नैया को पार नहीं कर पाए एवं उस निराकार अनंत सागर में समा गए ।...
    ९ KB (७१९ शब्द) - ०९:५२, २३ अप्रैल २०२०
  • क्षमा शर्मा की ‘स्त्री समय’ तथा अरविंद जैन का ‘औरत होने की सजा’ में परम्परा और रूढियों में फंसी एक आधुनिक स्त्री की अपनी अस्मिता को ढूँढने की तलाश है।...
    ९ KB (५९९ शब्द) - १९:३६, २९ फ़रवरी २०२४
  • खड़ी खोलती है द्वार- जागो फिर एक बार! आँखे अलियों-सी किस मधु की गलियों में फँसी, बन्द कर पाँखें पी रही हैं मधु मौन अथवा सोयी कमल-कोरकों में?- बन्द हो रहा...
    ३ KB (२५७ शब्द) - ०४:५१, ३० जुलाई २०२१
  • ताकते हो? ऐं? एक साथ पंद्रह-बीस कुल्हाड़े आर्य पर उछले और उनकी दाढ़ी में फँसकर हवा में झूलने लगे। पेड़ों के चेहरे पर हँसी खेल गई लेकिन संकोच के कारण उन्होंने...
    २९ KB (२,३९४ शब्द) - ११:३१, १३ अक्टूबर २०२१
  • बंधु! यह घाट वही जिस पर हँसकर, वह कभी नहाती थी धँसकर, आँखें रह जाती थीं फँसकर, कँपते थे दोनों पाँव बंधु! वह हँसी बहुत कुछ कहती थी, फिर भी अपने में रहती...
    १९ KB (१,५०५ शब्द) - ०४:५६, २६ जुलाई २०२१
  • मती,मत बिस्वास बिवेक। विना प्रेम सब धूरि है, अगजग एक अनेक।। प्रेम फांस में फँसि मरे, सोई जिये सदाहिं। प्रेम-मरम जाने बिना,मरि कोउ जीवत नाहिं।। (प्रेम-वाटिका...
    ९ KB (६९० शब्द) - ०५:०३, २६ जुलाई २०२१
  • चरणों की मन ही मन यों की 'पालागी' — कण्ठ में ज्ञान संवेदन के, आंसू का कांटा फंसा और मन में यह आसमान छाया, जिस में जन-जन के घर-आंगन का सूरज भासमान छाया झुरमुर-झुरमुर...
    ३ KB (२११ शब्द) - ०७:५७, २७ मई २०२३
  • (टेराबाइट) देता है। यह सभी मासिक किस्त में ही मिलेगी। अर्थात यदि आप इस में फंस गए तो उसके बाद आपको उस स्मृति का तो उपयोग करना ही है। लेकिन यदि आपने उस स्मृति...
    ९ KB (७८७ शब्द) - ०३:३९, ११ जून २०२१
  • तक हिरामन बैलों की रस्सी खींचे, तब तक घोड़ागाड़ी की छतरी बाँस के अगुआ में फँस गई। घोड़ा-गाड़ीवाले ने तड़ातड़ चाबुक मारते हुए गाली दी थी! बाँस की लदनी ही...
    १२५ KB (१०,५०२ शब्द) - ०८:१७, १० अक्टूबर २०२३
  • फिरें-तिरें। चाहें तो दुर्घटनाघात से बूढ़ी विकराल व्हेल-पंजर की काँख में फँसें-मरें। इतने में, भुजाएँ ये व्यग्र हो पानी को काटती उदग्र हो। अचानक खयाल यह...
    ५ KB (३६९ शब्द) - ०८:४४, २७ मई २०२३
  • सुखी लाला (कन्हैयालाल) से लिए गए कर्ज के जाल में परिवार मानो हमेशा के लिए फँस चुका है। खेती मौसम के रहमो-करम पर निर्भर है। गरीबी साया बनकर पीछे पड़ी हुई...
    ६ KB (५१७ शब्द) - १७:३०, २९ फ़रवरी २०२४
  • वह उसे नहीं सूझा । यहां तक कि उस गेहूं के दाने को चुगने के पहले जाल में फंस गया । 'मोहन मेले' में आपका ध्यान एक-दो पैसे की पूरी की ओर गया । न जाने आप...
    ११ KB (९१० शब्द) - ०९:२४, ६ जनवरी २०२३
  • वह उसे नहीं सूझा । यहां तक कि उस गेहूं के दाने को चुगने के पहले जाल में फंस गया । 'मोहन मेले' में आपका ध्यान एक-दो पैसे की पूरी की ओर गया । न जाने आप...
    ११ KB (९१० शब्द) - १७:४८, २१ मार्च २०२२
  • बुलाया जाता है। पूरी छानबीन होने के बाड एन्तर्त को यह समझ जाता है, की मारिया फंस रही है तो वह अपना एक गिफ्ट वहाँ मारिया के घर रखकर आ जाता है तथा आखिर में...
    ७ KB (५७६ शब्द) - ०७:०१, २८ फ़रवरी २०२४
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