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- को पढ़ने वाले पाठक के मन में भी धीरे धीरे अन्य लिपि के शब्द आने लगते हैं। जो किसी भी लिपि के लिए अच्छे संकेत नहीं है। इस लिपि के विकास हेतु हर समाचार...१९ KB (१,६०९ शब्द) - ०६:४१, २९ अप्रैल २०२०
- पहुँच किसी एक पाठक, एक गाँव, एक प्रखण्ड, एक प्रदेश, एक देश तक नहीं अपितु समूचे विश्व तक है। प्रिंट मीडिया से यह रूप में भी भिन्न है इसके पाठकों की संख्या...७ KB (५३३ शब्द) - १५:२८, १३ अगस्त २०२०
- का एकछत्र प्रभाव था। भक्ति-आन्दोलन के कारण जनरूचि में ऐसा परिवर्तन हुआ कि पाठक ही नहीं, लेखक भी संस्कृत से लोक-भाषाओं पर उतर आए उत्तर से लेकर दक्षिण तक...२१ KB (१,४९५ शब्द) - ०५:०३, ३१ अगस्त २०२४
- उतना इतिहास लेखन से है। कहना न होगा कि लेखन का अनिवार्य संबंध पाठकों से है। इतिहास के पाठकों की अपेक्षा होती है कि उसके सामने ऐतिहासिक विषय की स्पष्ट और...१६ KB (१,१७५ शब्द) - १५:४०, २९ फ़रवरी २०२४
- हांकनेवाले दास्तानगो और नाटक के ढंग में कुछ भी भेद न रहा। भट्टजी ने श्रीधर पाठक के द्वारा अनूदित गोल्डस्मिथ की कृति 'हरमिट' की भी समालोचना 'हिन्दी प्रदीप...१५ KB (१,०७७ शब्द) - ०५:२७, ३० जुलाई २०२१
- महत्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए श्री परमानंद श्रीवास्तव लिखते हैं जरूरी है कविता के पाठक के पाठ की संरचना संवेदना स्तर पर इसकी अनेक अनेक कर सकता और जटिलता को जाने...१० KB (८०८ शब्द) - ०६:४१, २७ मई २०२२
- रूप भाव का अनुभव कर रहे हैं , न कि करुण रस का। मम्मट की यह परिभाषा कवि और पाठक दोनों की जरूरतों में आवश्यक तालमेल बैठाने तथा कविता द्वारा दोनों की जरूरतें...१६ KB (१,०६० शब्द) - ०६:५२, ७ मई २०२२
- गयी हैं, पाठक की दृष्टि से नहीं। जैसे रिचर्ड्स की आलोचना केवल पाठक के लिए है, वैसे इलियट की आलोचना केवल पाठक के लिए नहीं बल्कि सर्जक और पाठक दोनों के...२८ KB (१,९३३ शब्द) - २०:५३, ८ जून २०२३
- आ जाता है जिसमें लोक-प्रवृत्ति को परिचालित करनेवाला प्रभाव होता है, जो पाठकों या श्रोताओं के हृदय में भावों की [ २१५ ]स्थायी प्रेरणा उत्पन्न कर सकता है।...५० KB (३,७५४ शब्द) - ०५:४३, ४ जनवरी २०२३
- भावनाओं का विकास भी हुआ। भारतेन्दु एवं द्विवेदी युगीन साहित्य ने पाठकों, आम जनता के मन में, वर्तमान में जिसे हम 'हिन्दुत्व' कहते है उसका विकास करने में...१३० KB (७,९१६ शब्द) - ०४:५८, २५ जुलाई २०२१
- (सौन्दर्य) पर आधारित शब्दार्थ प्रधान होता है। मम्मट की यह परिभाषा कवि और पाठक दोनों की जरूरतों में आवश्यक तालमेल बैठाने तथा कविता द्वारा दोनों की जरूरतें...३६ KB (२,५३७ शब्द) - १३:१७, ४ अक्टूबर २०२४
- विशिष्ट आपेक्षिकता/परिचय (अनुभाग अपेक्षित पाठक)डाली। विशिष्ट आपेक्षिकता भौतिकी के मूल स्तम्भों में से एक है। यह पुस्तक पाठक को आधुनिक भौतिकी और बीसवीं सदी की बहुत गहन खोज से अवगत करवा सकती है: ब्रह्मांड...४३ KB (२,९४३ शब्द) - १६:५५, ३० नवम्बर २०२१
- राजभवन तक' सुशीला टाकभौरे की 'शिकंजे का दर्द' आदि प्रमुख है। दलित आत्मकथाएँ पाठक को झकझोड़ती है। जिसमें दलितों के दुख दर्द को बयां करते हुए समाज के उन लोगों...१२ KB (८४९ शब्द) - १२:३३, ३ मार्च २०२४
- 'नयी कहानी' अपने युग सत्य से सीधे जुड़ी हुई है। जिसका मूल उद्देश्य है - पाठक को उसके समकालीन यथार्थ से, यथार्थ रूप में परिचित कराना। फणीश्वरनाथ रेणु,...११ KB (७४२ शब्द) - १०:५२, २६ जून २०२०
- अनुभवों को पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत कर यात्रा-साहित्य की रचना करने में सक्षम हो पाते हैं। यात्रा-साहित्य का उद्देश्य लेखक के यात्रा अनुभवों को पाठकों के साथ...१३ KB (९४२ शब्द) - १०:२०, १९ जुलाई २०१४
- परिचित कराना था, विकास-काल की स्वर्णिम योजनाओं पर प्रकाश डालना था और साथ ही युगीन शमीनी सच्चाइयों को भी अनावृत्त करना था। इसी के साथ-साथ पाठक की चेतना में...७६ KB (५,३४६ शब्द) - ०७:३९, २५ जनवरी २०२३
- 'नयी कहानी' अपने युग सत्य से सीधे जुड़ी हुई है। जिसका मूल उद्देश्य है - पाठक को उसके समकालीन यथार्थ से, यथार्थ रूप में परिचित कराना। फणीश्वरनाथ रेणु,...९ KB (६०४ शब्द) - १३:३६, १६ मई २०२०
- उसकी भैंस", आदि। आवर्तक वाक्य इसमें चरम सीमा अन्त में आती है। श्रोता या पाठक उत्सुकतापूर्वक प्रतीक्षा करता रहता है और तब उसके सामने वह बात आती है जो वक्ता...११ KB (८१६ शब्द) - १६:०६, १७ दिसम्बर २०२२
- समाचार पत्र, रेडियो तथा दूरदर्शन द्दारा हो रहा है। दैनिक समाचार-पत्र के पाठक देश के कोने-कोने में फैले रहते हैं। समाचार-पत्रों में देश भर के समाचार होता...९ KB (५९१ शब्द) - १८:४८, १० अगस्त २०२४
- उपन्यासों का विकास तमिल साहित्य की दुनिया में 19वीं सदी के अंत में उपन्यासों का आगमन हुआ, जिसने कहानी कहने का एक नया रूप पेश किया जिसने पाठकों को मंत्रमुग्ध...५९ KB (४,१२८ शब्द) - १७:१९, १३ जनवरी २०२४